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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ६ चिकित्सितस्थान' भाषार्टीकासमेत । (५२३ ) क्षतरोग में और पित्त ज्वर में भीतर और । नीम और वचका क्वाथ पान कराके वमन बाहर की शुद्धि के निमित्त जो जो चिकि- करावै । तथा कुलथी का यूष, जांगलमांस ₹सा कही गई है. वह भी करनी चाहिये। तीक्ष्ण मद्य, और जौ के बने हुए पदार्थ और कुटकी तथा मुलहटी का कल्क मिश्री और जल के साथ पीना उचित है। अन्य विधि। पिवेचूर्ण बचाहिंगुलवणद्वयनागरान् । पित्तज दृद्रोग में घी। सैलायबानीककणायवक्षारान् सुखांबुना ।। श्रेयसीशर्कराद्राक्षाजीवकर्षभकोत्पलैः ॥ फलं धान्याम्लकौलत्थयुषमूत्रासवैस्तथा। बलाखजूर काकोलीमेदायुग्मैश्च साधितम् । पुष्करावाभयाशुंठीशठीराखावचाकणाः ॥ सक्षीरं माहिष सर्पिः पित्तहृद्रोगनाशनम् ॥ काथं तथाऽभयाशुठीमाद्रीपीतद्रुकटफलात् । अर्थ-पित्तज हृद्रोग में गज पीपल, ____ अर्थ-कफज हृद्रोग में बच, हींग,सेंधा खांड, दाख,जीवक, ऋषभक, उत्पल, खरै- नमक, संचलनमक सोंठ, इलायची, अजटी, पिंडखजूर, काकोली, मेदा, महामेदा वायन, पीपल, और जवाखार इनका चूर्ण इन द्रव्यों के काथ में भेंस के दूध के साथ गुनगुने पानी के साथ अथवा त्रिफला, सिद्ध किया हुआ भैसका घी उत्तम होताहै। कांजी, कुलथी का यूष, गोमूत्र और आसव अन्य घृत। इनमें से किसी के साथ पान करै । तथा प्रपौंडरीकमधुकक्सिग्रंथिकसेरुकाः। पुष्करमूल, हरड, सोंठ,कचूर, रास्ना, पच, सशंठीशैवलास्ताभिःसक्षीरं विपचेद् घूतम् पीपल, इनके चूर्ण को पूर्वोक्त गुनगुने पानी शीतं समधु तश्चेष्टं स्वादुवर्गकृतं च यत् । पास्तिं च दद्यात्सलौद्रं तैल मधुकसाधितम् ॥ आदि के साथ सेवन करै । अथवा हरड, अर्थ-प्रपौंडरीक, मुलहटी, कमलनाल, सोंठ, अतीस. दारुहलदी, और कायफल पीपलामूल, कसेरू, सोंठ, और, शैवाल इनका काथ पान करें। इनके कल्क के साथ दूध मिलाकर धृत कफरोगनाशक अवलेह । पाक करै । यह घृत ठंडा होने पर शहत | काथे रोहीतकाश्वत्थखदिरोदुबरार्जुने ॥ , के साथ सेवन किया जाता है तथा द्राक्षादि सपलाशवटे व्योषत्रिवृच्चूर्णान्विते कृतः। | सुखोदकानुपानस्य लेहः कफविकारहा ॥ मधुर वर्गोक्त द्रव्यों के साथ सिद्ध किया | अर्थ-रोहेडा, पीपल,खर, गूलर, अर्जुन, हुआ घी भी दिया जाताहै । इसी तरह / ढाक, और वड इनके काढे में त्रिकुटा और मुलहटी के साथ पक्व तैल की शहत मि-निसाथ डालकर बनाया हुअ अवलेह कफलाकर बस्ति दी जाती है। विकारों को दूर करता है, उसको चाटकर कफज हृद्रोग में वमनादि। गुनगुना पानी पीलेना चाहिये । कफोद्भवे वमेत्स्विनः पिचुमंदबचांबुना। । अन्य चिकित्सा । कुलत्थधन्वोत्थरसतीक्ष्णमद्ययवाशनः ॥लमगल्मोदिताज्यानि क्षारांश्च बिविधानअर्थ-कफज हृद्रोग में स्वेदन के पीछे ।" पिवेत् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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