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(५१६)
अष्टांगहृदय ।
अ. ५
लावै ।
और चंदन का लेप करै । और इसी तरह | सिद्ध किया हुआ तेल का अथवा सौ वार खरैटी, रास्ना और तिल इनका लेप घी, धुले हुए घी का अभ्यंग करना चाहिये, शहत और चीनी मिलाकर उपयोग में तथा दूध वा मुलहटी के क्वाथ द्वारा परि
षेक करना राजयक्ष्मा में हित है । नस्यादि का प्रयोग।
अन्य उपाय। • पुनर्नवाकृष्णगंधाबलावीराविदारिभिः॥
प्रायेणोपहताग्नित्वात्सपिच्छमतिसार्यते ॥ नावनं धूमपानानि स्नेहाश्चोत्तरभक्तिकाः।
तस्यातिसारग्रहणीविहित हितमौषधम् । तैलान्यभ्यंगयोगीनि बस्तिकर्म तथा परम् ॥ अर्थ-सोंठ, सहजना, खरैटी, क्षीरका
___ अर्थ-प्रायः यक्ष्मारोग में अग्निके मंद
होजाने के कारण पिच्छायुक्त मल बार बार कोली और विदारीकंद इनका नस्य और
निकला करता है, इसलिये इस दशामें धूमपान में प्रयोग करे, तथा भोजन करने
अतिसार और ग्रहणी रोगमें कहीहुई औषधों के पीछे स्नेहपान, अभ्यंग में उपयोगी
का प्रयोग करना हित है। तैलादि और वास्तकर्म ये सब करने
राजयक्ष्मा में पुरीषकी रक्षा । चाहिये।
पुरीषं यत्नतो रक्षेच्छुप्यतो राजयक्ष्मिणः॥ . रक्तमोक्षण ।
सर्वधातुक्षयार्तस्य बलं तस्य हि विडूबलम् । शंगाद्यैर्वा यथादोषं दुष्टमेषां हरेदसूकू ।। अर्थ-राजयक्ष्मावाले रोगी की संपूर्ण ___ अर्थ-दोषके अनुसार सींगी, तुंबी,
धातुओं के सूख जाने पर उसके विष्टाकी पछना, जोक, अलाबु आदि लगाकर कफ
रक्षा वडी सावधानी से करनी चाहिये क्योंबात पित्त से दूषित रक्तको राजयक्ष्मा में
कि जब संपूर्ण धातु सूख जाते हैं तब पुरीष निकालना अच्छा है।
का बलही बल रहजाता है ।। राजयक्ष्मा में प्रदेह ।
यक्ष्माको अनवकाश। प्रदेहः सघृतैः श्रेष्ठः पद्मकोशीरचंदनैः। ७०। मांसमेवाभ्नतो युक्त्या माकिं पिवतोऽनुच दूर्वामधुकमंजिष्ठाकेसरैर्वा घृतप्लुतैः। अविधारितबेगस्य यक्ष्मा न लभतेऽतरम् ।
अर्थ-राजयक्ष्मा में पक्ष्माख, खस और अर्थ-जो मनुष्य युक्तिपूर्वक अर्थात् देश, चंदन को घी में सानकर प्रदेह करना काल और सात्म्यादि का विचार करके चाहिये अथवा दुव, मुलहटी, मजीठ और यक्ष्मारोग में कहे हुए मांसों का सेवन करकेसर इनको पीसकर धीमें सानकर प्र- ता है और ऊपर से मा।कारस का पान देह करै ।
करता है तथा मलमूत्रादि के उपस्थित वेगों . राजरोग में अभ्यंगादि । को नहीं रोकता है उसके राजयक्ष्मा रोग घटादिसिद्धतैलेन शतधौतेन सर्पिषा 1७१। की स्थिति नहीं हो सकती है । अभ्यंगः पयसा सेकः शस्तश्च मधुकांवुना। मद्यपानादि का विधान । ___ अर्थ-बटादि दूधवाले द्रव्यों के साथ सुरां समंडां माटकमारिष्टान्सीधुमाधवान् ॥
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