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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ.६ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (५१७) यथार्हमनुपानार्थ पिबेन्मांसानि भक्षयन् । स्नानादि की उत्कृष्टता। स्रोतोविबंधमोक्षार्थ बलौजःपुष्टये च तत् ॥ गौरसर्षपकल्केन नानीयौषधिभिश्च सः॥ अर्थ-जो मनुष्य मांस भक्षण करके | सायातुसुखैस्तोयैर्जीवनीयोपसाधेितैः । यथायोग्य सुरा, सुरामंड, माक, अरिष्ट, गंधमाल्यादिक भूषामलक्ष्मीनाशनी भजेत् । सीधु और माधवनामक मद्यका पान करता सुहृदां दर्शनं गीतवादित्रोत्सवसश्रुतिः। है उसके स्रोत खुल जाते हैं और बल तथा बस्तयः क्षीरसपीषि मद्यमांससुशीलता ।। दैवव्यपाश्रयं तत्तदथर्वोक्तं च पूजितम् । " ओजकी पुष्टि होती है। ____ अर्थ-सफेद सरसों को पानी में पीसस्नानादि का नियम । कर तथा स्नानोपयोगी अन्य सुगंधित द्रव्यों . स्नेहक्षीरांयुकोष्ठेषु स्वभ्यक्तमवगाहयेत् ।। उत्तीर्ण मिश्रकैः स्नेहभूयोऽभ्यक्तं सुखैः करैः।। द्वारा तथा जीवनीय गण में कही हुई औ. मृद्गीयात्सुसमासीनं सुखं चोद्वर्तयेत्परम्।। षधों के साथ सिद्ध किये कुछ गरम जल अर्थ-यक्ष्मारोगी को तेल से अच्छी | से हेमंतऋतु में यक्ष्मारोगी को स्नान कतरह अभ्यक्त करके तैलादि स्नेह, दूध वा | रावै, चन्दन केसर आदि सुगंधित प्रलेप, जल से भरे हुए पात्र में बैठाकर स्नान करै तथा सुगंधित फूलों की माला धारण करावै । पीछे उसमें से निकालकर गुल्म- करावे, अलक्ष्मनिाशक रत्नजटित अलंकार रोग के प्रकरण में कहे हुए मिश्रक स्नेह धारण करायै । सुहृदों से मिलना, गाने, द्वारा सुहाता हुआ मर्दन कर और सुखोत्पा- बजाने, पुत्रजन्म, विवाह आदि उत्सव के दक उबटना भी करे । बाक्य सुनना, वस्तिकर्म, घी, दूध, मद्य पौष्टिक उबटना। और मांसका भोजन, बलि, मंगल, होम, जीवती शतवीर्या च विकसां सपुनर्नवाम् ॥ अश्वगंधामपामार्ग तर्कारी मधुकं वलाम्।। प्रायश्चित्तादि कर्म करना, अथर्वोक्त यज्ञादिक बिदारी सर्षपान् कुष्टं तंडुलानतसीफलम् ॥ | करना, ये सब यक्ष्मारोग में श्रेष्ठ हैं । माषांस्तिलांश्च किण्वं च सर्वमेकत्र चूर्णय त् इतिश्री अष्टांगहृदयसहितायां भाषाटी: यवचूर्ण त्रिगुणितं दधा युक्तं समाक्षिकम् ॥ एतदुद्वर्तनं कार्य पुष्टिवर्णबलप्रदम् । कान्वितायां चिकित्सिस्थाने राज . अर्थ-जीवंती, शतावरी, मजीठ, सांठ, यक्ष्मस्वरभेदारोचक चिकिअसगंध, ओंगा, तर्कारी, मुलहटी, खरैटी, त्सितनाम पंचमोऽध्यायः । . विदारीकंद, सरसों, कूठ, तंडुल, अलसी, उरद, तिल, और किण्व इन सबको पीसकर सब से तिगुने जौका चून, तथा दही षष्ठोऽध्यायः। और शहत मिलाकर उबटना करै । यह उबटना पुष्टि, वर्ण और वलको करने- | अथाऽत छीदहृद्रोगतृष्णाविकित्सितं वाला है। व्याख्यास्यामः। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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