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अष्टांगहृदय ।
कपूर और मिश्री मिलाये हुए चन्द्रमाकी __ अन्य चूर्ण । कांति के समान अन्य पदार्थों का सेवन एलात्वङ्गागकुसुमतीक्ष्णकृष्णामहौषधम् । अत्यन्त रुचिकर होता है।
भागवृद्धं क्रमाच्चूर्ण निहंति समशर्करम् ५४ वातज अरोचकमें चिकित्सा ।
प्रसेकारुचिहत्पार्श्वकासश्वासगलामयान् । पातादरोचके तत्र पिबेच्चूर्ण प्रसन्नया।
अर्थ-इलायची एक भाग, दालचीनी दो हरेणुकृष्णाकृमिजिद् द्राक्षासैंधवनागरात् ॥
| भाग, नागकेसर ३ भाग, चन्य चार भाग, पलाभार्गीयवक्षारहिंगुयुक्ता घृतेन वा। पीपल पांचभाग,और सोंठ छः भाग इन सछर्दयेद्वा वचांभोभिः
ब को पीसकर सबके बराबर शर्करा मिला। अर्थ-वातज अरोचक में मटर, पीपल बायविडंग, द्राक्षा, सेंधा नमक और सोंठ
कर सेवन करने से मुखमें थूक भरना, अरुचि, इनके चूर्ण के साथ प्रसन्ना नामवाली म.
हृदयशूल, पार्श्ववेदना, खांसी, श्वास और दिरों का पान करै अथवा इलायची, भा-.
कंठके रोग नष्ट होजाते हैं।
अन्य चूर्ण । डंगी, जवाखार, हींगें डालकर घृतके साथ
यबानीतित्तिडीकाम्लवेतसौषधदाडिमम् ॥ पान करे । अथवा बचका काथ पिलाकर | कृत्वा कोलम् च कर्षांशम् सितायाश्चयमन करावे ।
चतुष्पलम्। पैत्तिक अरोचक में उपाय ।
धान्यसौवर्चलाजाजविरांगम्पित्ताच्च गुस्वारिभिः ॥ ५१ ॥
चार्धकार्षिकम् ॥५६॥ लिह्याद्वा शर्करासर्पिर्लवणोत्तममाक्षिकम् ।
पिप्पलीनां शतं चैक द्वे शते मरिचस्य च । .. अर्थ-पैत्तिक अरोचक में गुडका पानी
चूर्णमेतत्परं रुच्यं ग्राहि हृद्य हिनस्ति च ॥
विबंधकासहृत्पार्श्वप्लीहार्मोग्रहणीगदान । पिलाकर बमन करावे, अथवा खांड, घृत,
____अर्थ-अजवायन, इमली,अम्लवेत, सोंठ, सेंधा नमक और मधु मिलाकर चाटै।।
अनार, और वेर ये सब एक तोले ले और कफजअरोचक में उपाय। कफाद्वमेनिंबजलैर्दीप्यकारग्वधोदकम् ५२
इस चूर्णमें चार पल मिश्री मिलावै, तथा धपानं समध्वरिष्टाश्च तीक्ष्णाः समधुमाधवा
नियां, संचलनमक, कालाजीरा और दालचीपिवेच्चूर्ण च पूर्वोक्तं हरेण्वायुष्णवारिणा नी प्रत्येक एक तोला, पीपल सौ, कालीमिरच
अर्थ-पित्तज अरोचक में नीमका क्वाथ | दो सौ इन सबका चूर्ण वनालेवे, यह चूर्ण मिलाकर वमन करीव । इसके अतिरिक्त अ- अत्यन्त रुचिकर, प्राही, हृदयको हितकारी हो जवायन, अमलतास का काढा पान करावै । | ता है तथा विवंध, खांसी, हृदय और पसली अथवा मधुके साथ तीक्ष्ण अरिष्ट और मधु | का दर्द, प्लीहा, अर्श और ग्रहणी रोगों को के साथ मावीक नामक मद्यका पान करावे | खो देता है। और ऊपर कहे हुए हरेवादि के चूर्ण को तालीसपत्रादि चूर्ण । गरम जलके साथ सेवन करै ।
। तालीसपत्रं मरिचं नागरं पिप्पली कणा॥
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