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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ५ चिकित्सितस्थान भाषाटाकासमत । - कर देता है और नस्यद्वारा प्रयोग किये । फांके अथबा वमनकारक तीक्ष्ण औषधों का जानेपर अत्यंत उत्तम हैं । सेवन करै ॥ पित्तजस्वरसादि में नस्यादि। | उच्चभाषण से अभिहत स्वर । प्रपौंडरीक मधुकं पिप्पली वृहती बला। शर्कराक्षौदमिश्राणि शतानि मधुरैः सह । साधितं क्षीरसर्पिश्च तत्स्वयं नावनं परम पिवेत्पयांसि यस्योश्चैर्वदतोऽभिहता स्वरः ॥ लिह्यान्मधुरकाणां च चूर्ण मधुघृताप्लुतम्।। अर्थ-चिल्लाकर बोलने से जिसका स्वर अर्थ-पित्तज स्वरसादमें प्रपौंडरीक, मुल. बैठगया हो उसे मधुररसविशिष्ट द्रव्यों के हटी, पीपल, बडी कटेरी और खरैटी, इनके साथ दूध का पाक करके उसमें मिश्री काढेमें सिद्ध किये हुए दधका घी स्वरको | और शहत मिलाकर पान करावै । हितकारक और नस्यमें परमोपयोगी है। अगेचक में उपाय। तथा मधुररसयुक्त द्रव्यों का चूर्ण शहत / विचित्रमन्नमरुचौ हितैरुपहितं हितम् । और घी मिलाकर चाटना चाहिये । ____ अर्थ-अरुचिरोग में. हितकारी द्रव्यों के द्वारा अनेक प्रकारके भोजन और पानी कफजस्वरभेदमें चिकित्सा। बना बना कर देने चाहिये । संपूर्ण रोगों पिकनि मृग ककजे रूसभोजनः ॥ की अपेक्षा अरुचि भारी व्याधि है, इस कटूकलामलकव्योषं लिहातैलमधुप्लुतम् । व्योषक्षाराग्निचविकाभार्गीपथ्यामधूनि वा लिये जिन बातों से अरुचि दूर हो पहिले ___ अर्थ-कफसे उत्पन्न हुए स्वरभेद में वेही करनी चाहिये । गोमूत्र के साथ कटुरस द्रव्यों का सेवन अरुचिमें अन्य उपाय । करै, रूखा भोजन खाय, कायफल, आमला | बहिरंतर्मुजाचित्तनिर्वाण हृद्यमौषधम् ४७ ॥ द्वौ कालो दंतधबनं भक्षयन्मुखधावनैः। और त्रिफला इन को पीसकर तेल में मिला | कषायैःक्षालयेदास्यं धूमं प्रायोगिकंपिवेत् ॥ कर चाटै अथवा त्रिकुटा, जवाखार, चीता, । अर्थ-अरुचिरोग में स्नानादि द्वारा चव्य, भाडगी, हरड, और मुलहटी इन बाहरकी शुद्धि करे । वमनविरेचन द्वारा सब द्रव्यों का चूर्ण तेल और मधु मिलाकर भीतर की शुद्धि करे । चिसकी शांति, हृदय सेवन करै। को हितकारी औषध, दोनों समय दंतधावन अन्यउपाय । मुखधावनोपयोगी कषायों से मुख धोना यवैर्यवागू यमके कणाधात्रीकृतां पिबेत् ।। और स्नैहिक धूमपान करने चाहिये । भुक्त्वाद्यात्पिप्पली शुंठी तीक्ष्णं वा यमनं अन्य उपाय । भजेत् ॥४५॥ तालीसचवटकाः सकर्पूरसितोपलाः। - अर्थ-घी और तेल दोनों स्नेहों में पीपल शशांककिरणाख्याच भक्ष्या रुचिकरा और आमला डालकर यवागू वनाबे, इसके भृशम् ॥ ४९ ॥ खाने के पीछे पीपल और सौंठ का चूर्ण अर्थ-तालीसपत्र के चूर्ण के बडे अथवा For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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