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अष्टांगहृदय ।
__ अर्थ-दशमूल का काढा, वा दूव, वा । किये हुए दूधमेंसे माखन निकालकर इसमाखमांसरस, वा खरैटीका कल्क, अथवा मंसा- | नको पपिल और शहत मिलाकर सेवन करे हारियों के मांसरस में खरैटीका कल्क डाल तो स्वर बहुत शुद्ध होजाता है, सिरकादर्द, कर सिद्ध किया हुआ घी देना चाहिये । पसलीका दर्द खांसी, श्वास और उवर नष्ट अथवा दसगुने दूध खरेटीका कल्क डाल होजातहै इसीतरह पांचप्रकार के पंचमूल कर सिद्ध किया घी शहत मिलाकर सेवन के साथ सिद्ध किये हुए दूधका घीभी उक्त करना चाहिये ।
गुणकारक होता है। राजयक्ष्मा पर अन्य घृत ।
अन्यघृत । जीवंतीमधुकं द्राक्षां फलानि कुटजस्य च ।
| पंचानां पंचमूलानां रसे क्षीरचतुर्गुणे। पुष्करावं शठी कृष्णां व्याघ्री गोक्षुरकं वलाम् सिद्धं सपिर्जयत्येतद्याश्मिणः सप्तकं बलम् ।। नीलोत्पलं तामलकी त्रायमाणां दुरालभाम् ।
__ अर्थ-पांचप्रकारके पंचमूलके काथमें चौगुकल्ककृित्य घृतं पक्कं रोगराजहरं परम्॥ १७॥ | ___ अर्थ-जीवंती, मुलहटी, दाख, कु.डाक
ना दूध डालकर पकाया हुआ घी यक्ष्मारोगी बीज, पोहकरमूल, कचूर, पीपल, कटेरी,
के सात प्रकारके पीनसादि रोगोंको दूरकर गोखरू, खरैटी, नीलकमल, तामलकी, त्राय
देता है, पांचप्रकार के पंचमुल येहैं, कंटक माणा, और दुरालभा इनका कल्क करके
पंचमूल, तृणपंचमूल, बल्लीपंचमूल, वृहत्पं-- घी पकावै इस घीके सेवनसे सजयक्ष्मा नष्ट चमूल, और लघुपंचमूल । होजाता है।
गुल्मादिरोग पर घृत । अन्यघृत ।
पंचकोलयवक्षारषट्पलेनपचे घृतम् । धृतं खर्जूरमृद्धीकामधुकैः सपरूषकैः। प्रस्थोन्मितं तुल्यपया स्रोतसां तद्विशाधनम् । सपिष्पलीकं बैस्वर्यकासश्वासज्वरापहम् ॥ ! गुल्मज्वरोदरप्लीहग्रहणीपांडुपीनसान् । ___ अर्थ-खजूर, मुनक्का, मुलहटी और फा- | श्वासकासग्निसदनश्वयथूछानिलान्जयेत्। लसा इनका कल्क डालकर चौगुने जल में ____ अर्थ-पंचकोल [ पीपल, पीपलामूल, घी पकाकर तयार करले इसमें पीपल पीस | चव्य, चीता और सोंठ ] और जवाखार ये कर मिला लेबै इसके सेवन से स्वरका वि- छः द्रव्य प्रत्येक एक एक पल तथा एक कार खांसी, श्वास और ज्वर नष्ट होजाताहै प्रस्थ घी और एक प्रस्थ दूध इनको पकाअन्यघृत ।
कर सेवन करने से स्रोत अत्यंत शुद्ध हो दशमूलशृतात्क्षीरात्सर्पिर्यदुदियानवम्।।
जाते हैं, तथा गुल्म, ज्वर, उदररोग, प्लीहा सपिप्पलीक सक्षौद्रं तत्परं स्वरबोधनम् ॥ शिरपाचोसशूलघ्नं कासश्वासज्वरापहम ।। ग्रहणी, पांडुरोग, पीनस, श्वास, खांसी, अपंचमिः पंचमूलैर्वा शृताद्यदुदियाद् घृतं ॥ | ग्निमांद्य, सूजन और ऊर्ध्ववात ये सव रोग
अर्थ-दशमूल के कार्ड के साथ सिद्ध नष्ट होजाते है ।
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