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अ०५ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासभेत । (५११)
शोषरोग पर घृत । | सारानरिष्टगायत्रीशालबीजकसंभवान् ॥ रानाबलागोक्षुरकस्थिरावर्षाभुवारिणि। | भल्लातकं विडंग च पृथगष्टपलोन्मितम् । जीवंती पिप्पलीगर्भ सक्षीरं शोषजिद घृतम् सालले षोडशगुणे षोडशांशस्थिते पचेत् ।। ___ अर्थ-रास्ना, बला, गोखरू, शालपर्णी | पुनस्तेन घृतप्रस्थं सिद्धे चास्मिन्पलानि षट् और पुनर्नवा इनके काढ़े में जीवती और |
| तवक्षीर्याः क्षित्रिशत्सिताया द्विगुण मधु ॥
घृतात्रिजातात्रिपलंततो लीढं खजाहतम् । पीपल का कल्क मिलाकर दूध सहित पका | पयोनुपानं तत्प्राणे रसायनमयंत्रणम् ॥ हुआ घी शोषराग को जीत लेता है। मेध्यं चक्षुष्यमायुष्यं दीपनं हंति चाचिरात्। . अश्वगंधादि घृत ।
मेहगुल्मक्षयव्याधिपांडुरोगभगंदरान् ॥ अश्वगंधाच्छृतात्क्षीराद् घृतं च ससितापयः
| अर्थ-इलायची, अजमोद, त्रिफला, सौअर्थ-असगंध के साथ सिद्ध किया राष्ट्रमृत्तिका, त्रिकुटा, चीता, तथा नीम, हुआ दूध जमाकर उस मेंसे घी निकालले । खैर, साल और वजिक इन वृक्षों का सार, और इसमें मिश्री और दूध मिलाकर पावै मिलावा और बायाबडंग इन द्रव्यों में से तो उक्त गुण करता है।
प्रत्येक आठ आठ पल सोलह गुने जल में मांसं धृत।
डालकर आगपर चढादे जब सोलहवां भाग साधारणामिषतुलांतोयद्रोणद्वये पचेत् ॥
रहजाय तब उतार कर छान ले । फिर तनाष्टभागशेषेण जीवनीयैः पलोन्मितः । साधयेत्सर्पिषः प्रस्थं बातापित्तामयापहम् ।।
इस काढे में एक प्रस्थ घी डालकर पकावै। मांससर्पिरिदं पीतं युक्तं मांसरसेनवा।
| पीछे वंशत्रोचन छःपल, खांड ३० पल, कासश्वासस्वरभ्रंशशोषहृत्पार्श्वशुलजित्। | शहत दो प्रस्थ, त्रिजातक तीन पल ये __ अर्थ- विदेशय और प्रसह साधारण डालकर दही मथने की रई से मथकर जंतुओं का मांस एक तुला, दो द्रोण जल दुपहर पहिले थोडा २ चाटै और ऊपरसे दूध में पकावै जब आठवां भाग बच रहै तब पावै । यह घृत रसायन, सुखपूर्वक सेवन जीवनीयगणोक्त द्रव्य एक एक पल लेकर योग्य, मेधावर्द्धक, नेत्रों को हितकारक, उसका कल्क उसमें डालदे और एक प्रस्थ , आयुर्वर्द्धक, और अग्निसंदीपन, है यह प्रघी डालकर पकावै । यह मांससर्पि कहलाता मेह, गुल्म, क्षयोरोग, पांडुरोग, और है, इसके सेवन करने से वातपित्तरोग भगंदर रोगों को शीघ्रही दूर कर देता है । जाते रहते हैं अथवा मांसरस के साथ युक्ति
अन्यकर्तब्य। पूर्वक पान करनेसे खांसी, श्वास, स्वरभंग, ये च सर्पिगुंडाः प्रोक्ताः क्षते योज्या:शोष, हृदयशूल, और पसली के दर्द जाते
क्षयेऽपि ते। रहते हैं।
___ अर्थ-क्षतरोग में जो जो घी और गुड़ रासायनिक घृत ! कहे गये हैं उस सबका क्षयीरोग में भी प्रएलाजमोदात्रिफलासौराष्ट्रीव्योषचित्रकान् । योग किया जाता है ।
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