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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५.४) अष्टांगहृदय । उक्तरोगों में पेया। उक्तरोगों पर सत्तू ।। शिग्रुवार्ताककासघ्नवृषमूलकैः । सक्तन्वाकांकुरक्षारभावितानांसमाक्षिकान् पल्लवैर्निवकुलकवृहतीमातुलिंगजैः ॥ २१॥ यवानां दशमूलादिनिकाथलुलितान् पिबेत् । व्याघ्रीदुरालभा श्रंगीबिल्वमध्य त्रिकंटक। अर्थ-आकके अंकुर और दूधकी भावना पेयाच चित्रकाजाजी श्रृंगीसौवर्चलैः कृता।। दशमूलेन वा कास श्वासहि मारुजापहा । दिये हुए जौ का सत्तू वनवाकर दशमूल, __ अर्थ--सहजना, बेंगन कसौदी, अडूसा शठी रास्ना आदि ऊपर कह हुए द्रव्यों के मूली, नीम, परवल, कटेरी और बिजौरे | काढे में सानकर शहद मिलाकर पानकरै । इन सब के पत्ते, तथा कटेरी, दुरालभा, उक्त औषध पर आहार । काकडासींगी, बेलगिरी का गूदा और गो | अन्नेच योजयेत्क्षारहिंग्वाज्याबडदाडिमान्। खरू इनसे बनाई हुई, तथा चीता, काला सपौष्करशठीब्योषमातुलिंगाम्लवेतसान् ॥ जीरा, काकडासिंगी और संचल नमक इन ___ अर्थ-क्षार, हींग, घृत, विडनमक, अके साथ वा दशमूल के साथ सिद्ध की नार, पुष्करमूल, कचूर, त्रिकुटा, बिजौरा, हुई पेया का आहार करावै । इससे खांसी और अम्लवेत ये द्रव्य भोजने के अन्न में श्वास, हिचकी और वेदना शांत होजातीहै । मिलाने चाहिये । . कषाय और पेया। उक्तरोगों पर पेय द्रव्य । दशमूल शठीरास्ना भार्गीबिल्वधि पुष्करैः। दशमूलस्य वा काथमथवा देवदारुणः । पिवेद्वा बारुणीमंडं हिमाश्वासी पिपासितः कुलीर शृंगी चपलातामलक्यमृतौषधैः ।। पिवेत्कषायं जीर्णेऽस्मिन्पेयांतैरेवसाधिताम् | __ अर्थ-हिचकी और श्वासवाले को तृषा अर्थ-दशमूल, कचूर, रास्ना, भाडंगी, लगनेपर, दशमूल वा देवदारु का क्वाथ बेलगिरी, ऋद्धि, पुष्करमूल, काकडासिंगी, अथवा सुरामंड, देना चाहिये । सिद्धि, भूम्यामलकी, गिलोय और सौंठ । उक्त रोगों पर सक्र । इनका क्वाथ, पानेको दे और क्वाथ के पिप्पलीपिप्पलीमूलपथ्याजंतुघ्नचित्रकैः । जीर्ण होजानेपर पूर्वोक्त दशमूल के काढे | कल्कितैलेपिते रूढे निक्षिपद घृतभाजने ॥ सिद्ध की हुई पेया खाने को दे. इससे हि. तक्रं मासस्थितं तद्धि दीपनं श्वासकासजित । चकी और श्वास, जाते रहते हैं ॥ अर्थ-पीपल, पीपलामूल, हरड, वायबि. अन्य औषध । डंग, और चीता इन सव द्रव्यों को पीसकर शालिषष्टिकगोधूमयवमुद्गकुलत्थभुक् । एक घी की हांडी के भीतर इनका लेप कर कासहृदप्रहपावीर्तिहिमाश्वासप्रशांतये ॥ अर्थ-शालीचावल, साठीचांवल गैहूं, दे, जव लेप सूख जाय तव उस घडेमें तक जौ. मंग, और कुलथी इनका भोजन करने | भरकर एक महिने तक रहने दे फिर इसको से खांसी, हृदयवेदना, पसलीका दर्द, हि- पीनेके काममें लावै, यह खांसी श्वासको खो चकी और श्वास प्रशमित होजातहैं । । देता है और अग्निसंदीपन है । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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