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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ ४ www.kobatirth.org चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । अन्य पेय औषध | पाठां मधुरसां दारु सरलं निशि संस्थितम् ॥ सुरामंडेऽल्पलवणं पिवेत्प्रसृतिसंमितम् । भार्गी शुठ्यो सुखभोभिः क्षारं बा मरिचान्वितम् । ३१ । स्वकाrपिष्टां लुलितां बाष्पिकां पाययेत वा अर्थ - पाठा, मुलहटी, देवदारु, और सरलकाष्ठ इनको पीसकर थोडासा नमक मिलाकर सुरामंड में डालकर रातभर रहनेदे । दूसरे दिन इसमें से दो पल प्रतिदिन सेवन करै अथवा भाडंगी, सोंठ का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ,अथवा जत्राखार और पिसी हुई काली मिरच मिलाकर अथवा हिंगुपत्री को हिंगुपत्री के काढ़े में पीसकर हिंगुपत्री के काढ़े में ही घोलकर पान कराना चाहिये । अन्यपेय द्रव्य | स्वरसः सप्तवर्गस्य पुष्पाणां वा शिरीषतः । हिमाश्वासे मधुकणायुक्तः पित्तकफानुगे । अर्थ - सप्तपर्णी का रस अथवा सिरस के फूल का रस शहत और पीपल मिलाकर पित्तकफानुगामी हिचकी और श्वास रोग में देना चाहिये । | अन्य उपाय | उत्कारिका तुगाकृष्णा मधूलीघृतनागरैः । पित्तानुबंधे योक्तव्या पवने त्वनुबन्धिनि । श्वाविच्छामित्रकणा घृतशल्यकशोणितैः चतुर्गुणांबुसिद्धं वा पयः सगुडनागरम्। सुवर्चलादिसिद्धं वा तयोः शाल्यो-. दादनु ॥ ३५ ॥ | अर्थ - पित्तानुबंधी हिचकी और श्वास रोग में वंशलोचन, पीपल, गेहूं, घी, सोंठ इनकी उत्कारिका बनाकर दे । पवनानुगामी हिचकी और श्वास में सेह और ससे ६४ 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०५) का मांस, पीपल, घृत और शल्लकी का रुधिर इनकी उत्कारका बनाकर सेवन करे । बातानुबंधी हिचकी और खास में चौगुने जल में बकरी का दूध गुड और सोंठ डाल कर पकाया हुआ पीने में देना चाहिये । तथा वातापित्तानुबंधी हिचकी और श्वास में संचलनामक और मांसरसादि के साथ में सिद्ध किया हुआ शालीचांवलों का भात खाकर ऊपर से दूध पीवै । अन्य उपाय | पिप्पलीमूलमधुक गुडगोश्वशकृद्रसान् । हिध्माभिष्यंद् कासनान् लिह्यान्मधुघृतान्वितान् ॥ ३४ ॥ अर्थ - पीपलामूल, मुलहटी गुड, गौका गोवर, और घोडे की लीद का रस इनमें मधु और मिलाकर चाटने से हिचकी, घृत अभिष्यंद और खांसी जाती रहती है । कफाधिक्य श्वास और हिचकी । गोगजाश्वव राहोष्ट्रख र मेषाजविरसम् । समध्येकैकशो लिह्याद्रहु श्लेष्माऽथवापिवेत् चतुष्पाश्चर्म रोमास्थिखुरशुगोद्भवां मषीम् । तथैव वाजिगन्धाया लिह्यात् श्वासकफोल्वणः ॥ ३७ शठी पुष्कर धात्री पौष्करं वा कणान्वितम् गैरिकांजन कृष्णां वा स्वरसं वा कपित्थजम् रसेन वा कपित्थस्य धात्री सैंधवपिप्पलीः । घृतक्षौद्रेण वा पथ्याविडंगोषणपिप्पलीः ॥ कोलला जामलद्राक्षापिप्पलीनागराणि वा । गुडतै लनिशाद्राक्षाकणारास्नोषणानि वा ॥ पिबेद्रसांबुमद्याम्लैलैहौषधरजांसि वा । ॥ अर्थ- गौ, हाथी, घोडा, शूकर, ऊंटा, मेंढा, और बकरी इनके विष्टाओं का रस इनमें से प्रत्येक में मधु डाल डालकर पीवै। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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