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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६०२) अष्टांगहृदय । . अ० । की मलाई द्वारा मृदु विरेचन देवे । विशेष उपरोक्त हेतुमें दृष्टांत । करके खांसी, हल्लास, इद्ग्रह और स्वरसाद | उदीर्यते भृशतरंमार्गराधादहज्जलम् ॥ ॥ में पीपल, सेंधानमक और शहद मिलाकर यथाऽनिलस्तथा तस्य ___ मार्गमस्माद्विशोधयेत् । अथवा वातको उत्पन्न न करने वाले द्रव्य | अर्थ-जैसे जलके बहनेका मार्ग रुकजाने मिलाकर वमन देवे । के कारण जल बहुत बढजाताहै, इसीतरह __कफनिकलने पर मुखमाप्ति । वायुका मार्ग रुकजाने के कारण वायु बहुत निईते सुखमाप्नोति सकफे दुष्टविग्रहे। ही बढ जाता है, इसलिये उसके मार्गों का स्रोतःसु च विशुद्धेषु चरत्यविहतोऽनिलः ६ अर्थ-शरीरमें विकार करनेवाले कफके शोधन करना अत्यन्त हितकारी है । निकल जानेपर इस रोगी को सुख प्राप्त | उक्तरोगों की अशान्तिमें कर्तव्य । | अशांतौ कृतसंशुद्धधूमैर्लीन मलं हरेत् १० ॥ होताहै । तथा कसे लिहसे हुए स्रोतों के ___ अर्थ-उक्त उपायोंसे भी यदि कफ दूर खुल जानेसे वायु बे रोक टोक सब स्रोतों नहो तो आगे लिखे हुए धूमपानों का प्रयोग में घूमने लगताहै । करना चाहिये । अन्य उपाय । धूमपान की विधि । | हरिद्रापत्रमरेण्डमलम् द्राक्षां मनःशिलाम् । ध्मानोदावर्ततमके मातुलिंगाम्लवेतसैः।। सदेवदावलं मांसी पिष्वा वति प्रकल्पयेत् हिंगुपालुबिडैर्युक्तमन्नं स्यादनुलोमनम् ॥७॥ तां घृताक्तां पिवेमं यवान्वा घृतसंयुतान् । ससैंधवं फलाम्लं वा कोष्णं दद्याद्विरेचनम् । अर्थ-अफरा, उदावर्त, तमकश्वास, इन मधूच्छिष्टं सर्जरसं घृतं वा गुरु वाऽगुरु ॥ चंदन वा तथा शृंगं बालान्बा स्त्राव वागवाम् से युक्त श्वास और हिचकी के रोगों में ऋक्षगोधकुरंगैणचर्मशृंगखुराणिवा ॥१३॥ बिजौरा, अम्लवेत, हींग, पीळू, बिडंग इन | गुग्गुलु बा मनोहां वा शालनिर्यासमेव वा। से युक्त अन्नका सेवन करनेसे वायुका अनु- शल्लकी गुग्गुलु लोहं पद्मकं वा घृतप्लतम् ।। लोमन होताहै अथवा बिजौरा आदि खट्टे | अर्थ-हलदी, तेजपात, अरंडकीजड, फल में सेंधानमक मिलाकर स्रोतों की विश | दाख, मनसिल, देवदारू, हरताल, जटामांसी द्विके लिये विरेचन देवे । | इनको पीस घृतमें सान बत्ती बनाय आंग उक्त उपायका फल । लगाकर पीवे | अथवा धीमें मिले हुए जौ । एते हि कफसंरुद्धगतिप्राणप्रकोपजाः ॥ ८॥ अथवा मोम, राल और घी इनकी वत्ती तस्मात्तन्मार्गशुद्धयर्थ मूर्ध्वाधः शोधनं हितम् बनाकर धूमपान करे, अथवा उत्तम काले अर्थ-कफद्वारा प्राणवायु की गति रुक | अगर का धूआं पीवे । अथवा चंदन का जानके कारण हिचकी और श्वास रोग उत्प- धूआं पीवे । अथवा गौके सगिका वा गौके न्न होजातेहैं, इसलिये इन स्रोतोंके शुद्धिके गले के बालोंका धूआं पीवे अथबा रीछ, कारण वमन और बिरेचन देना हितहैं। | गोह, कुरंग, और एणके चर्म, सींग और For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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