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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज२. चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत | ४७७) शर्करा इन पांचों द्रव्यों के बने हुए पंचसा- फिर इस मांसरसमें यवागू पकावै । इस शी. राख्य नामक मंथमें घी और धानकी खीलों । तल यवागमें मिश्री और शहत मिलालव, का सत्तू मिलाकर देवै । अथवा जिस रोगीका और इसको भोजन के लिये देवै । उक्तवि. खटाई पर मन चलता हो उसे ऊपर लिखे धि से सिद्ध कियेहुए मांसरस को भी घी में हुए पंचताराख्य मंथमें अनारदाने वा आम- भूनकर शर्करा मिलाकर देवै तथा खटाई ले की खटाई मिलाकर देवै । | चाहनेवाले को इसमें अनारदाने वा आमले पेयाकी बिधि । की खटाई मिलाकर देवै, और जिस की ख' कमलोत्पलकिंजल्कपृश्निपर्णीप्रियंगुकाः ॥ टाईपर इच्छा न हो उसे बिना खटाई ही देवै उशीर शाबरं रोत्रं शृंगबेरं कुचंदनम् । रक्तपित्त में भूकशिंबी धान्यादि । .. हीबेरं धातकीपुष्पं बिल्वमध्यं दुरालभा ॥ अर्धाधै विहिता पेया वक्ष्यंते पादयौगिकाः। शूकशिंबीभवं धान्यं रक्ते शाकं च शस्यते ॥ भूनिंबसेयजलदा मसूराः पृश्निपर्ण्यपि ॥ अन्नस्वरूपविज्ञाने यदुक्तं लघु.शीतलम् । विदारिगंधामुद्राश्च बला सर्पिहरेणुका। ____ अर्थ-रक्तपित्त में शूक और शिंबी से अर्थ-(१) कमल केसर, उत्पलकेसर, उत्पन्न धान्य तथा शाक हित होता है पृश्निपी और प्रियंगु, (२) खस, सावर तथा अन्नस्वरूप विज्ञानीयाध्याय में जो जो लोध, अदरख और लालचंदन, ( ३ ) नेत्र हलका और शीतल है वह सब हित है। . वाला, धायके फूल, वेलगिरी और धमासा । पानी का प्रकार । इन आधे आधे श्लोकोमें कहेहए तीन योगों | पूर्वोक्तमबुपानीयं पंचमुलेन वा श्रृतम् ॥ से पेया तयार करले । तथा ( १ )चिरायता, | लघुना शृततिं वा मध्वंभो वा फलांबुमा खस और मोथा, (२) मसूर, और प्रश्नपर्णी ____ अर्थ-शुंठी रहित पूर्वोक्त षडंग पानी, (३) विदारीगंध और मूंग,( ४ ) खरैटी,वृ: वा लघुपंचमूल डालकर औटाया हुआ ठंडा जल, वा केवल औटाया हुआ ठंडा जल, त और रेणुका इन चौथाई चौथाई श्लोकोंमें कहे हुए चार प्रयोगों द्वार। सिद्ध की हुई अथवा मधुमिश्रित जल, अथवा पित्तनाशक पेया का सेवन करे। द्राक्षादि फलों द्वारा सिद्ध जल रक्त पित्त मांसके सिद्ध करनेकी रीति । । में हितकारी होता है । जलपाक की विधि जांगलानि च मांसानिशीतवीर्याणि साधयेत् इस तरह लिखी हैं कि "कर्ष गृहीत्वा पृथक्पृथग्जले तेषां यवागूः कल्पयेद्रसे। | द्रव्यस्य क्वाथयेत्नास्थिभास । अर्द्धशते ताः सशर्कराक्षौद्रास्तद्वन्मांसरसानपि ॥ प्रयोक्तव्यं जलपाके त्वयंविधिरिति । इषदम्लाननम्लान्याघृतभृष्टान्सशर्केरान्। शशादि का मांस । _अर्थ-ऊपर कहे हुए पेयाके उपयोगी शशः सवास्तुकःशस्तो विबंधे तित्तिरि पुनः पृथक् पृथक् कषायोंके साथ शीतवीर्यवाले | उदुंबरस्य नि!हे साधितो मारतेऽधिके । शशकादि जांगल जीवोंका मांस सिद्ध करे। प्लक्षस्य बहिणस्तद्वन्न्यग्रोधस्य च कुक्कुटः। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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