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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org [ ४७८ ] अष्टांगहृदय | | अर्थ - रक्तपित्त रोगी के मलका विबंध होने पर बथुए के शाक के साथ खगश का मांस देना हित है । बाकी अधिकता में गूलर के काथ के साथ तीतर का मांस, पाकड के काथ के साथ सिद्ध किया हुआ मोरका मांस, तथा बड के क्वाथ के साथ मुर्गे का मांस सिद्ध करके देना हितकारी है । रक्तपित्त में वर्जित | 86 'यत्किचिद्रक्तपित्तस्य निदानं तच्च वर्ज - येत् “ ॥ २३ ॥ अर्थ - जिन कारणोंसे रक्तपित्त उत्पन्न हो उन आहारविहारादिको त्याग देना हुआ चाहिये । अन्यउपाय | वासारसेन फलिनी मृद्रोधांजनमाक्षिकम् । पित्तास्रुक् शमयेत्पीत निर्यासो वाटरूष कात् ॥ २४ ॥ शर्करामधुसंयुक्तः केवलो वा श्रुतोऽपि वा । वृषः सद्यो जयत्यस्नं स ह्यस्य परमाषैधम् अर्थ - अडूसे के रसके साथ प्रियंगु, सौराष्ट्रमृत्तिका, ( इसके अभाव में पक्व पर्पटी " लोध, रसौत, और शहत इनके पीने से रक्तपित्त शांत होजाता है । अथवा असे का रस शहत और मिश्री मिलाकर पीनेसे रक्त पित्त दूर होजाता है । अथवा केवल अडूसे का रस वा असे का क्वाथ पीने से भी रक्त पित्त शीघ्र नष्ट होजाता है | अडूसा रक्तपित्त की परम औषध है | रक्तपित्त में तीन क्वाथ । पटोलमालती निब चंदनद्वयपद्मकम् । रोधो वृषस्तंदुलीयः कृष्णामृन्मदयतिका ॥ शतावरी गोपकन्या काकोल्यो मधुयष्टिका । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० २ रक्तपित्तहरा काथास्त्रयः समधुशर्कराः ॥ अर्थ - (१) परवल, मालती, नीम, लालचंदन सफेद चंदन, और पदमाख, [२] लोध, अडूसा, चौलाई, कालीमृत्तिका और मदयंती (३) सितावर, अनंतमूळ, काकोली, श्रीरकाकोली, और मुलहटी | आधे २ श्लोक में कहे हुए तीन काथों को शहत और मिश्री मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त जातारहता है । यहां हरा होनेपर भी अडूसा दूना नहीं डालना चाहिये | तंत्रांतर में कहा मी है कि वासाकुटज कूष्मांडात पुष्पासहाचराः । नित्यमार्द्राः प्रयोक्तव्यास्तथापि द्विगुणा न त इति । ढाकी छालका काढा | पलाशवल्कक्काथो वा सुशीतः शर्करान्वितः पिबेद्वा मधुसर्पिर्भ्यां गवाश्वशकृतो रसम् ॥ अर्थ- ढाक्की छालके काढेको अत्यंत ठंडा करके चीनी मिलाकर पीवे, अथवा गौ का गोवर और घोडे की लीदके रस में शहत और घी मिलाकर पीने से रक्तपित शांत होजाता है । ग्रथितरक्तपित्त में अवलेह | सक्षौद्रं ग्रथिते रक्ते लिह्यात्पारावतं शकृत् । अर्थ - रक्तपित्त में खूनकी गांठ होजाने पर कबूतर की बीटमें शहत मिलाकर चाटना चाहिये | अतिस्रावीरक्तपित्त की चिकित्सा । अतिनिःसृत रक्तश्च क्षौद्रेण राधरं पिबेत् ॥ जांगलं भक्षयेद्वाजमामपित्तयुतं यकृत् । अर्थ - रक्तपित्त में खून के अधिक निकलने पर जांगल पशुका रुधिर शहत डालकर पीवै, अथवा वकरे के कच्चे यकृतको उस के पित्ते के साथ खाना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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