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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७६) अष्टांगहृदय । श्र. ' अशुद्धरक्त के धारणमें निषेध । मिलाकर मोदक वनालेये । इनके सेवन से अश्नतो बलिनोऽशुद्धं न धार्य तद्धि रोगकृत् भी उक्तरोग नष्ट होजाते हैं । धारयेदन्यथा शीघ्रमग्निवच्छीघ्रकारि तत् ॥ अधोगामी रक्तपित्त की चिकित्सा । - अर्थ-जिस रोगी में भोजन की शक्ति | वमनं फलसंयुक्तं तर्पणं ससितामधु ॥१०॥ और शरीरमें बलहो तो निकलते हुए अशुद्ध ससितं वा जलं क्षौद्रयुक्तं वा मधुकोदकम् । रक्तको न रोकना चाहिये, क्योंकि इसके रो क्षीरं वारसमिक्षा कनेस सिराब्यधविधि अध्यायमें कहे हुए | अर्थ-अधोगामी रक्तपित्तमें वमन कराने के विसर्प, विद्रधि, और प्लीहादि अनेक प्रकार | निमित्त शर्करा और मधुमिश्रित मेनफल के के रोग उत्पन्न होजातेहैं । किन्तु यदि रोगी तर्पणका प्रयोग करे। अथवा शर्कराका जल, उक्त लक्षणों से विपरीत लक्षणवाला हो | वा मधुमिश्रित जल, वा मुलहटी का काथ, अर्थात् दुर्वलहो और उसमें भोजन करनेकी | वा दूध वा ईखका रस इनमें से किसी के शक्ति नहो तो दूषित रक्तको भी शीघ्र बंद | साथ मेनफल मिलाकर वमन के लिये देव । करदेना चाहिये क्योंकि रक्तके बन्द न करने शुद्धहोने के पीछकी बिधि । से यह अग्निके समान शीघ्र प्राणनाशक | शुद्धस्यानंतरो विधिः ॥११॥ होताहै । | ययास्वं मंथपेयादिः प्रयोज्यो रक्षता बलम् रक्तपित्त में अवलेह । ___ अर्थ-ऊर्ध्वग और अधोग रक्तपित्तों में तृवृच्छयामाकषायेण कल्केन च सशर्करम् | क्रमसे विरेचन और वमनद्वारा शुद्ध होने के साधयेद्विधिबल्लेहं लिह्यात्पाणितलं ततः॥ पीछे रोगीको यथाविधि ऊर्ध्वगामी रक्तपित्त ___ अर्थ-निसौथ, श्यामानिसौथ, इन दोनों में मंथादि और अधोगामीमें पेयादि देवै, पर के कषायमें इन्हींका कल्क मिलाकर अवलेह । न्त रोगीके वलपर ध्यान रखना चाहिये । क्नालेवे । इसमें मिश्री मिलाकर दो दो तोले मंथ बनानेकी विधि । चाटता रहै, इससे रक्तपित्त जाता रहताहै। मंथो ज्वरोक्तोद्राक्षादिः पित्तघ्नैर्वा फलैः कृतः अन्य औषध । मधुखर्जूरमृद्धीकापरूषकासितांभसा । तृवृता त्रिफला श्यामा पिप्पली शर्करा मध। मथो वा पंचसारेण सघृतैर्लाजसक्तुभिः॥ मोदकः सनिपातोर्वरक्तशोफज्वरापहः॥ दाडिमामलकाम्लो वा". तृवृत्समसिता तद्वत् पिप्पली पादसंयुता। मंदाग्नयम्लाभिलाषिणाम् । अर्थ-निसौथ, त्रिफला, श्यामानिसौथ अर्थ-ज्वरकी चिकित्सा में कहा हुआ पीपल, शर्करा, शहत इन सवको मिलाकर | मंथ वा द्राक्षा, मधूक, मधुकआदि पित्त नाशविधिपूर्वक मादक तयार करले, इनके सेवन | क फलों द्वारा सिद्ध किया हुआ मंथ अथवा से सानिपातिक ऊर्ध्वगामी रक्तपित्त शोथ और दाख, आमला, खंभारी और मधुकादि फलों प्रवर जातेरहते हैं । तथा समान भाग नि- से सिद्ध किया हुआ मंथ देना चाहिये । सोथ और मिश्री लेकर चतुर्थीश पीपल | अथवा शहत, खिजूर, दाख, फालसा और For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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