SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 570
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सिस्थान भाषाटीकासमेत । (४७३) - ग्रहोत्थज्वरमें कर्तव्य । अर्थ-औषधीगंधादिज जो घर कहे ग्रहोत्थे भूतविद्योक्तं बलिमंत्रादिसाधनम् ॥ गये हैं उनके उत्पन्न होने के समय वातादि, अर्थ-ग्रहादि के आवेश से उत्पन्न हुए किसी दोषका संपर्क नहीं होता है, परन्तु ज्वर में भूतविद्योक्त वलि, और मंत्र द्वारा उत्पन्न होतेही वातादि दोषों द्वारा व्याप्त चिकित्सा करना उचित है। होता है इसलिये इन सब ज्वरों में दोषों के औषधीगंधजज्वर । ओषधांगंधजे पित्तशमनं विषाजद्विषे ।। | अनुसार आहारादि की कल्पना करनी ___ अर्थ-औषध की गंध से उत्पन्न वर चाहिये। में पित्तनाशक और विषजज्वर में विषनाशक वातादि के कोप के अनुसार । चिकित्सा करना उचित है । न हि ज्वरोऽनुबध्नाति मारुताद्यैर्विना कृतः। क्रोधादि ज्वरका उपाय । ___ अर्थ-जब बातादि दोष के बिना अन्य इष्टैरथैर्मनोहश्च यथादोषशमेन च । १६७। कारणों से ज्वर होता है वह बहुत कालतक हिताहितविवेकैश्च ज्वरं क्रोधादिजं जयेत् । नहीं रहता है, इसलिये ऊपर कहे हुए ज्वरों अर्थ-क्रोध, भय, शोकादि से उत्पन्न | में अवश्यही दोषों का कोप रहता है. अतः स्वर में अभीष्ट और मनोज्ञ विषयों द्वारा दोषानुसार आहारकी कल्पना करना तथा वातादि दोषों के शमनोपाय द्वारा अवश्य है । तथा हिताहित की विवेचना द्वारा चिकि ___ ज्वरके कालकी स्मृतिका नाश । त्सा केर। ज्वरकालस्मृति चास्य हारिभिर्विषयैर्हरेत् ॥ ... क्रोधज ज्वर । अर्थ-मनोहर कथा वार्ता कह कहकर क्रोधजो याति कामेन शांति क्रोधेन कामजः भयशोकोद्भवा ताभ्यां भीशोकाभ्यां तथेतरी रोगी को ज्वर आनेका समय भुलादेना ___ अर्थ-क्रोध जज्वर काम द्वारा और कामज चाहिये, क्योंकि कथा बार्ता में मन लग ज्वर क्रोध द्वारा, भयज और शोकजज्वर जाने से ज्वर का काल उल्लंधित होनेपर कामक्रोध द्वारा तथा कामक्रोधजज्वर भयशोक नहीं भी आता है। द्वारा प्रशमित होता है। __ करुणाई मनको ज्वरनाशकता। शापज बर। करुणाद्रे मनः शुद्धं सर्वज्वरविनाशनम् । शापाथर्वगमंत्रोत्थे विधिदैवव्यपाश्रयः ॥ अर्थ-रागद्वेषादिरहित शुद्ध और करु अर्थ शाप और अथर्ववेदोक्त मारक | णाई मन सब ज्वरों को नष्ट करदेता है । मंत्रों द्वाग उत्पन्न ज्वर में ईश्वर उपासना ही ___ ज्वर में व्यायामादि का त्याग । मुख्य विधि है। त्यजेदाबललाभाञ्च ब्यायामसानमैथुनम् ॥ ज्वररोगमें अहारादि की कल्पना।। गुर्वसात्म्यविदाह्यन्नं यश्चान्यज्ज्वरकारणम्। ते ज्वराः केवलाः पूर्व ब्याप्यतेऽनंतरं मलै अर्थ-ज्वरके छोडजाने पर भी जबतक तस्माहोषानुसारेण तेप्याहारादिकल्पयेत् ।। बल न आजाय तबतक व्यायाम, स्नान, For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy