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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय। कर औटाया हुआ दूध, दुग्ध शेष रहनेपर अन्य दुग्ध । पान करे अथवा केवल पीपल डालकर औ• वृश्चीबविल्ववर्षाभूसाधितं ज्वरशोफनुत् ॥ टाया हुआ दूध पीना हितकारी है । शिशिपासारासद्ध वा क्षीरमाशु ज्वरापहम् पंचमूल संस्कृत दूध । अर्थ-सफेद सांठकी जड, बेलगिरी, कासाच्छ्वासाच्छिरःशुलात्पार्श्व और बडी सांठ इनसे सिद्ध किया हुआ दूध शूलाञ्चिरज्वरात् । ज्वर और सूजनको दूर करता है । अथवा मुच्यते ज्वरितः पीत्वा पंचमूलीशृतं पयः ॥ | शीशमके निर्याससे सिद्ध दुग्ध शीघ्र ज्वरना. __ अर्थ-पंचमूल डालकर औटाया हुआ शक है। दूध पीनेसे ज्वररोगी खांसी, श्वास, शिरोवे पक्वाशयगत दोषमें निरूह । दना, पार्श्वशूल और चिरकालानुबंधी ज्वरसे निरूहस्तु बलं वढि विज्वरत्वं मुदं रुचिम् ॥ मुक्त होजाता है । दोषे युक्तः करोत्याशु पक्के पक्काशयं गते । एरंडसिद्धदूध । ___ अर्थ-दोषके पक्व होने और पक्वाशयमें शुतमेरडमूलन.बालबिल्वेन वा ज्वरात् । जाने पर निरूहका प्रयोग करना चाहिये । धारोष्णं वा पयः पीत्वा बिबद्धानिलवर्चसः | निरूहसे बल, जठराग्नि, ज्वरहीनता, आनंद सरक्तपिच्छातिसृते सतृट्शूलप्रवाहिकात्। और रुचि शीघ्र होते है । अर्थ-अरंड की जड डालकर पकाया | विरेचनादि प्रयोग । हुआ दूध, अथवा, कच्ची बेलगिरी पित्तं वा कफपित्तं वा पक्वाशयगतं हरेत् ॥ डालकर औटाया हुआ दूध अथवा धारोष्ण | स्वसन त्रीनपि मलान् बस्तिः पक्काशयाश्रयान् दूध पीनेसे रोगी ऐसे ज्वरसे मुक्त हो जाता । अर्थ-पक्वाशयगत केवल पित्तको अथहै जिसमें अधोवायु और मलका विशेषरूप वा कफपित्तको विरेचन से निकाले । वस्ति से विबंध होगया हो, अथवा ऐसे ज्वरसे / द्वारा पक्काशयगत तीनों दोषोंको दूर करे । मुक्त होजाता है जिसमें रक्त और पिच्छायुक्त ____ अनुवासन का प्रयोग ।। अतिसार हो, अथवा तृषा, शूल और प्रवा प्रक्षीणकफपित्तस्य त्रिकपृष्ठकटिग्रहे । ११६। हिका से युक्त ज्वरसे छूट जाता है । दीप्ताग्नेर्बद्धशकृतःप्रयुंजीतानुवासनम् । ___ अर्थ-जिस ज्वररोगी के कफपित्त क्षी, शोफपर शुंठ्यादि दुग्ध। ण हो गयेहों, त्रिकं, पीठ और कमरमें जसिद्धं शंठीबलाव्याघ्रीगोकंटकगुडैः पयः ॥ कडनहो. अग्नि प्रदीप्तहो और मल का विबंध शोफमूत्रशद्वातविबंधज्वरकासजित् । । हो उसे अनुवासन वस्ति देनी चाहिये । ___. अर्थ-सोंठ, खरैटी, कटेरी, गोखरू और ज्वरनाशक वस्ति ॥ गुड इनसे सिद्ध किया दूध पीनेसे सूजन, मल, मूत्र और अधोवायुकी विवद्वता, तथा | स्थिरावलागोक्षरकमदनोशीरवालकैः। " पटोलनिंबच्छदनकटुकाचतुरंगुलैः॥ ११ ॥ ज्वर और खांसी जाते रहते हैं। | पयस्योदके काथं क्षीरशेषं विमिाश्रितम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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