SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 553
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५६) अष्टांगहृदय । अ... पित्तज्वरमें तिक्तकषाय । अर्थात् कषायरस कफपित्तनाशक होता है तिक्तः पित्त विशेषेण प्रयोज्यः कटुकः कफे यह वात पहिले कही जा चुकी है परंतु अर्थ-विशेष करके पित्तज्वर में तिक्त यहां पुनरुक्ति का यह कारण है कि कषाय रसवाले द्रव्यों के काथका प्रयोग करना द्रच्यों का क्वाथ केवल नवज्वर, सन्निपातज उचित है । विशेष शब्द के प्रयोग से वातकफज, वातपित्तज ज्वरों में ही अशस्त यह समझना चाहिये कि तिक्तरसान्वित द्रव्यों नहीं है, किंतु पित्तकफज ज्वर में भी इसका का कषाय अन्य दोषोत्पन्न ज्वरों में भी प्रयोग न करना चाहिये । दिया जाता है, केवल पित्तज्वर में ही नहीं औषध के प्रयोग में मतभेद । कारण यहहै कि पित्तरस स्वाभाविक ही ज्वर सप्ताहादौषधं केचिदाहुरन्ये दशाहतः। नाशक होता है, और यह बात पहिले केचिल्लध्यन्न भुक्तस्य योज्यमामोल्वणे न तु कही भी जा चुकी है कि "तिक्तः स्वयम- अर्थ-कोई कोई आचार्य कहते हैं कि रोचिष्णुररुचिं कृमितृड्विषम् । कुष्ठमूर्छा सात दिन पीछे आठवें दिन ज्वरघ्न औषध ज्वरोस्क्लेददाहापत्तकफान् जयदिति" इसलिये यथायोग्य सिद्ध करके देना चाहिये । किसी रसों में तिक्तरस के समान और कोई रस का यह मत है कि दस दिन पीछे देना ज्वरघ्न नहीं है। चाहिये । कोई यह कहते हैं कि मंडपेयादि __ कफचर में कटुरसविशिष्ट और ज्वर । पूर्वोक्त लघु अन्नका भोजन करने के पीछे नाशक द्रव्यों का क्वाथ देना चाहिये । क्यों औषध देना चाहिये, किंतु आमकी प्रवलाकि जैसे तिक्त द्रव्य मात्र ज्वरघ्न होते है | वस्थामें छः, सात वा दस दिन पीछे भी पैसे कटुरसविशिष्ट द्रव्य मात्र ज्वरनाशक 'मुस्तापपटकादि' औषध न देनी चाहिये नहीं होते हैं। औषध देने में कारण । . तरुणज्वर में कषायनिषेध । तीव्रज्वरपरीतस्य दोषवेगोदये यतः । दोषेऽथवाऽतिनिचिते तंद्रास्तमित्यकारिण पित्तश्लेष्महरत्वेऽपि कषायस्तुन शस्यते॥ अपच्यमानं भैषज्यं भूयो ज्वलयति ज्वरम्। नवज्वरे मलस्तंभात्कषायो विषमज्वरम् । कुरुतेऽरुचिहल्लासहिध्माध्मानादिकानपि॥ अर्थ-मोथापर्पटी आदि के कषायद्वारा . अर्थ-कषायरसविशिष्ट द्रव्यों का क्वाथ तीबज्वर से पीडित रोगी को आमदोषका ययपि पित्तकफनाशक होता है तथापि नव वंग उदय होने अथवा उसी वातादि दोपका अधिक संचय होनेसे तंद्रा और ज्वर में देना अच्छा नहीं होता है,इसका का स्तिमिता उत्पन्न होजाते हैं । उस समय रण यह है कषायरस मलको स्तंभित करताहै आम से आच्छादित होने के कारण अग्नि और मलके स्तंभित होनेसे सततकादि विषम दी हुई औषध का अच्छी तरह परिपाक ज्वर,अरुचि,इल्लास,हिचकी और आध्माना- नहीं कर सकती है और ज्वर को अधिक दि रोग पैदा होजाते हैं । 'कषायाकफपित्तहा, तर प्रज्वलित करदेती है, इसलिये आमाधि For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy