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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. १ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । क्य ज्वर में छः, सात, वा दस दिन से ) पटोलं सारिवा मुस्ता पाठा कटुकरोहिणी । पटोल निवत्रिफलामृद्धीकामुस्तवत्सकाः ॥ पहिले औषध न देना चाहिये । किराततिक्तममृता चंदनं विश्वभेषजम् । औषध के प्रयोग का काल । धात्रीमुस्तामृताक्षौद्रमर्धश्लोकसमापनाः ।। मृदुज्वरो लघुर्देहश्चलिताश्च मला यदा ॥ पंचते संततादीनां पंचानां शमना मताः । अचिरज्वरितस्याऽपि भेषजं कारयेत्तदा । अर्थ-(१) इन्द्रजों, परवल, कुटकी अर्थ-जब ज्वर मृदु ( हलका ) हो, (२) परवल, सारिवा, नागरमोथा, पाठ देहहलकी हो, और मलमूत्रादि की प्रवृत्ति और कुटकी, ( ३ ) परवल, नीमकी छाल, अच्छी तरह होने लगगई हो, तब अचिर ज्वरवाले को भी अर्थात् छः दिन से त्रिफला, मुनक्का, नागरमाथा और इन्द्रजौ पहिले भी औषध देदेनी चाहिये । ( ४ ) चिरायता गिलोय , लालचंदन और औषध विधि। और सोंठ, (५ आमला, नागरमोथा, मुस्तया पर्पटं युक्तं शुख्या दुःस्पर्शयाऽपि वा | गिलोय और ऊपर से शहद । ये आधे पाक्यं शीतकषाय वा पायोशारं सवालकम् आधे श्लोक में पांच प्रकार के क्वाथ कहे पिबेत्तद्वन्च भूनिंबगुडूचीमुस्तनागरम् ॥४६॥ गये हैं इनमें से यथाक्रम एक एक प्रयोग अर्थ-पूर्वोक्त लक्षणों के प्रकट होनेपर संतत, सतत, अन्येशुष्क, तृतीयक और नागरमोथा, पित्तपापडा, अथवा मोथा और चतुर्थक ज्वर में देने चाहिये। सोंठ अथवा मोथा और दुरालभा, इनका वातज ज्वर में औषध । काथ ठंडा करके पीवे | अथवा पाठा, खस दुरालभाऽमृता मुस्ता नागरं वातजे ज्वरे। और नेत्रवाला इन का काथ ठंडा करके पावै अथवा पिप्पलीमूलगुइची विश्वभेषजम् । अथवा चिरायता, गिलोय नागरमोथा और | कनीयः पंचसूलं च सोंठ इनका क्वाथ ठंडा करके पीवे । अर्थ--वातजज्वर में धमासा, गिलोय उक्तकषायों का यथायोग प्रयोग । नागरमोथा, और सोंठ अथवा पीपला. यथायोगमिमे योज्याः कषाया दोषपाचनाः मुल, गिलोय, सोंठ और लघु पंचमूल का ज्वरारोचकतृष्णास्यवैरस्यापक्तिनाशनाः ॥ कषाय देना चाहिये । ___ अर्थ-ऊपर कहे हुए कपाय यथायोग पित्तज ज्वर में कषाय ! अर्थात् जो जिस ज्वर में देने योग्य हैं पित्ते शक्रयवा घनम् ॥५२॥ उस देने पर आमदोष का परिपाक हो जाता कटुका चेति सक्षौद्रं मुस्तापर्पटकं तथा ॥ है, और ये काथ ज्वर, अरुचि, तृपा, मुख सधन्वयासभूनिबं की विरसता, और अपाक का नाश करने ___ अर्थ पित्तज्वर में इन्द्रयव, नागरमोथा, वाले हैं। कुटकी इनके क्वाथ में शहद मिलाकर देवे ___ संततादि ज्वर की चिकित्सा ।। अथवा मोथा, पित्तपापडा, धमासा और कलिंगकाः पटोलस्य पत्रं कटुकरोहिणी ॥ | चिरायता इनका क्वाथ देवे । ५८ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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