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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५४) अष्टांगहृदय । अ० १ पित्ताधिक्यवाला ज्वररोगी सोंठ डालकर | पल और आमला डालकर सिद्ध की हुई सिद्ध की हुई पेयाको ठंडी करके और | यवागू पीना चाहिये । पीपल और आमल शहत मिलाकर पीवे । वस्ति, पसली को घीमें तल लेना चाहिये । यह पेया पुरीऔर सिर में शूलवाले ज्वररोगी को क- षादि मल और वातादि दोषों को अपने टेरी और गोखरू डालकर सिद्ध की हुई मार्गमें प्रवृत्त करनेवाली है। पेया देना चाहिये। विवद्ध कोष्ठ में पेया ।। - ज्वरातिसार में पेया। चविकापिप्पलीमूलद्राक्षामलकनागरैः । पृश्निपबिलाविल्बनागरोत्पलधान्यकैः । कोष्ठे विबद्ध सरुजि सिद्धां ज्वरातिसार्यम्लां पेयां दीपनपाचनीम् अर्थ-वेदनायुक्त कोष्ठकी विवद्धता में ... अर्थ-पृश्निपर्णी,खरैटी, बेलगिरी,साठ, चव्य, पपिलामल, दाख, आमला, और सोंठ कमल और धनियां डालकर सिद्ध की हुई डालकर सिद्ध की हुई पेया पान करावै । पेया में अनारदाने की खटाई डालकर परिकर्तनि कोष्ठ में पेया । ज्वरातिसारवाले रोगी को देना चाहिये । पियेत्तु परिकर्तनि। “यह पेया अग्निसंदीपन और आमपाचक है। कोलवृक्षाम्लकलशीधावनीश्रीफलैः कृताम् ( शंका) पेयाके प्रसंग में कह दिया गया अस्वेदनिद्रस्तृष्णातः सितामलकनागरैः। है कि यदि रोगी का मन खटाई पर चले सितावदरमृदाकासारिवामुस्तचंदनैः।३३। तृष्णाच्छर्दिपरो दाहज्वरघ्नी क्षौद्रसंयुताम्। तो अनारदाना डालकर देदेना चाहिये फिर ___ अर्थ-कोष्टमें केंचीसे कतरनेकीसी पीडा यहां खटाई का उल्लेख क्यों है । ( उत्तर ) होनेपर घेर, वृक्षाम्ल, पिठवन, कटेरी, वेलसेगी का मन खटाई पर चले वा न चले फल, इनको डालकर सिद्ध की हुई पेयापान परन्तु वसतिसारी रोगी को खटाई डालकर करावे । पसीनों का अभाव, निद्रानाश और ही पेया देनी चाहिये । . तृष्णा इनसे पीडित रोगीको चीनी, आमला . हिमादि में पेय.पान । और सोंठ से सिद्ध की हुई पेया देवे । तृषा हस्वेन पंचमूलेन हिक्कारुकश्वासकासवान् ।। पंचमलेन महता कफातों यवसाधितामा वमन आर दाहज्वर में ज्वर को नाश करने विवद्धवर्चाः सयवां पिप्पल्यामलकैः श्रुताम् । वाली चीनी, बेर, किसमिस, अनंतमूल, यवाणू सर्पिषाभृष्टां मलदोषानुलोमनाम् । नागरमोथा और चन्दन डालकर सिद्ध की अर्थ -हिचकी, श्वास और खांसी वाले हुई पेया शहत डालकर पीना चाहिये ॥ रोगी को लघुपंचमूल से सिद्ध की हुई पेया रसादि करणविधि । देना चाहिये । कफपीडित रोगी को वृहत्पं. | कुर्यात्पेयौषधैरेव रसयुपादिकानपि॥ ३४ ॥ चमूलसे सिद्ध की हुई जौ और तंडुल की | अर्थ-जिन जिन द्रव्योंसे पेया सिद्ध की पेया देना चाहिये । मलकी विवद्धतामें पी- | जातीहै उन्हीं उन्हीं द्रव्योंसे मांसरस और For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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