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अ० १
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
[४५३]
नेप्यते
कर चिकित्सा करे । जैसे ईंधन से अग्नि तेषु हि हित शमनं यन्न कर्शनम्। प्रज्वलित होती है वैसेही मंडपेयादि द्वारा अर्थ-शुद्ध वातज्वर ( आमदोषादि से
जठराग्नि प्रदीप्त होती चली जातीहै । ज्वर अदूषित ) में, धातुक्षयज ज्वरमें, आगंतु
रोगी को पेया छः दिन तक देनी चाहिये ज्वरमें, और वीर्ण ज्वरमें रोगी को लंघन
और छः दिनसे पहिले ही ज्वर शांत हो नहीं कराना चाहिये।
जाय तो दोषदूष्यादि की अपेक्षा से भक्तयूइनके लिये शमन हितकारक होताहै ।
षादि देवे । छः दिन ब्यतीत होने परभी ( शंका ) शमन के संतर्पण और अपतर्पण
| जन तक ज्वर में मृदुता न हो पेयापान क. दो भेदहें इनमेंसे कौनसा शमन देना चाहिये !ना चाहिये । (प्रश्न) कोई कोई यह कहते (उत्तर) यन्न कर्षनम् अर्थात् वृंहण शमन | | हैं कि इस दशा में छः दिनका नियम क्यों दैना चाहिये ।
किया गया है ( उत्तर ) इस विषय में अलंधित और लंधित की पहिचान । किसी किसी का यह मत है कि छ:दिन तत्र सामज्वराकृत्या जानीयादविशोषितम् । पहिले भी यदि ज्वर में मृदुता होजाय तो द्विविधोपक्रमशानमवेक्षेत चलंघने । भी छ:दिन तक पेया पान कराता रहे इस __ अर्थ-इन ज्वरोंमें आमके लक्षण अर्थात्
लिये छः दिनका नियम किया है । ज्वर के उपयों की तीक्ष्णतादि होनेसे रोगी को अ
मृदु होने पर पाचन देना चाहिये । लंधित समझना चाहिये अर्थात् यह समझना
पेया का उपक्रम । चाहिय कि लघन का फल नहा हुआ आर प्राग्लाजपेयां सुजरांसशुठीधान्यपिप्पलीम् लंघन में द्विविधोपक्रमणीयं में कहे हुए ससैंधवांतथाम्लार्थी तां पिवेत्सह दाडिमाम् विमलेन्द्रियता और मलमूत्र का प्रवर्तन अर्थ-सब प्रकार की पेयाओं में लाल आदि निराम के लक्षणों को देखकर जान पेया ( धान की खील ) बहुत शीघ्र पच लेना चाहिये कि सम्यक लंघन होगयाहै | जाती है, इसलिये सोंठे, धनियां, पीपल
ज्वररोगी का पेयाद्वारा उपचार ।। डालकर सिद्ध की हुई लाजपेया में थोडा यक्तं लंधितलिंगैस्तु तं पेयाभिरुपाचरेत् । सा सेंधानमक डालकर पान करावै । यदि यथास्वौषधसिद्धाभिमंडपूभिरादितः। रोगी का मन खटाई पर चले तो अनारदाना तस्याग्निर्दीप्यते ताभिः समिद्भिरिव पावकः।
उसी पेया में डाल देना चाहिये । षडहं वा मृदुत्वं वा ज्वरो यावदवाप्नुयात्। अर्थ-जब ज्वररोगी में विमलेन्द्रियतादि
अन्परोगों में पेया।
सष्टविड बहुपित्तो वा संशुठीमाक्षिकांसम्यक् लंघन के लक्षण उपस्थित हो जांय
हिमाम् ॥ २७ ॥ तब उसको वातादि दोषों के योग्य औषधों वस्तिपार्श्वशिरःशूलीब्याघ्रीगोक्षुरसाधिताम् से सिद्ध की हुई मंड पेयादि का आहार दे- अर्थ-भिन्न पुरीषवाला ज्वररोगी, अथवा
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