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अ०१६
निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४४३)
विचरता हुआ संधि अस्थि और मज्जा में | और अति ऊष्मा । ये सब लक्षण उपस्थित छिदने कीसी पीडा करता है, शरीर को | होते हैं । टेढा करके खंजता वा पंगुता उत्पन्न कर । कफानुविद्ध वातात । देती है।
कफेस्तैमित्गुरुताय प्तिस्निग्धत्वर्शातताः। वाताधिक वातरक्त।
कंडूमदा च रुग्घातेऽधिकेऽधिकं तत्र शूलस्फुरणतोदनम्।
। अर्थ-कफाधिक्य वातरक्त में स्तिमिता शोफस्यरौक्ष्यकृष्णत्वश्यावतावृद्धिहानयः॥ गुरुता, सुप्ति, स्निग्धता, शीतता, खुजली धमन्यगुलिसंधीनांसकोचोंऽगग्रहोऽतिरुक् और मंद मंद वेदना होती है। शीतद्वेषानुपशयौ स्तंभवेपथुसुप्तयः १३ ॥
द्वंद्वज वातरक्त। अर्थ-वाताधिक्य वातरक्त में शूल, द्वंद्वसर्वलिंगम् च संकरे ॥ १६ ॥ स्फुरण, शूचीवेधवत वेदना होती है सूजन अर्थ-दो दोषों की अधिकता वाले में रूखापन, कालापन, श्यावता होती है, वातरक्त में उक्त दो दो दोषों के लक्षण कभी बढ़ जाती है और कभी घट जाती है। पाये जाते हैं और तीनों दोषों की अधिधमनी उंगली और संधियां सुकड जाती हैं । कतावाले घातरक्त में तीनों दोषों के मिले अंगप्रह, अत्यन्त वेदना, शीतल पदार्थों में हुए लक्षण पाये जाते हैं। अनिच्छा, शीत में अनुपशय, स्तब्धता, वातरक्त को साध्यादि। . कंपन और सुन्ति ये लक्षण होते हैं। एकदोवानुगं साध्यं नवं याप्यं द्विदोषजम् ।
त्रिदोषजं त्यजेत्स्रावि स्तब्धमर्बुदकारि च ।। रक्ताधिक्यवातरक्त ।
__ अर्थ-एक दोष से उत्पन्न हुआ और रक्ते शोफेऽतिरुक्तोदस्ताम्रश्चिमिचिमायते ।।
थोडे दिनका वातरक्त साध्य होता है । दो निग्धरूः शमं नैतिकण्डूक्लेदसमन्वितः॥ दोपों से उत्पन्न हुआ वातरक्त याप्य होता
अर्थ-रक्ताधिक्य वातरक्त में सूजन, है । तीन दोषों से उत्पन्न दुआहो, स्रावी तीब्रशूल, तोद, ताम्रवर्ण, चिमचिमाहट, | हो और अर्बुदकारी हो वह असाध्य होता कंडू और क्लेद होता है । इसमें स्निग्ध और | है, इसका इलाज नहीं होसकता है। रूक्ष उपचारों से शांति नहीं होती है । वातरक्त को मारकत्व ।
पित्तानुविद्ध वातरक्त । रक्तमार्ग निहत्याशु शाखा संधिषु मारुतः। पित्ते विदाहः संमोहः स्वेदो मुर्छा मदःसतृट् | निविश्यान्योन्यमाचार्य वेदनाभिर्हरत्यसून्॥ स्पर्शाक्षमत्वं रुग्रागः शोफपाको भृशोषमता | ___अर्थ-कुपित हुआ वायु हाथ पांवों की
अर्थ-पित्ताधिक्य वातरक्त में अत्यन्त | संधियों में घुसकर रक्तके मार्ग को रोक दाह, संमोह, स्वेदं, मुर्छा, मद, तृषा, स्पर्श | देता है पीछे रक्त और वायु आपस में एक का न सहना, वेदना, शोथमें ललाई, पाक | दूसरे को आवृत करके ऐसी ऐसी पीडा
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