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अष्टांगहृदय ।
अ.१६
करता है, जिससे प्राणों का नाश हो / विरोधिरूक्षभीहर्षविषादाद्यैश्च दूषितः॥२३॥ जाता है।
| पुंस्त्वोत्साहबलदंशशोफचित्तोत्प्लवज्वरान् ।
सर्वांगरोगनिस्तोदरोमहर्षांगसुप्तताः॥ २४॥ प्राणवायु का कर्म ।
कुष्ठं विसर्पमन्यांश्च कुर्यात्सर्वागगान् गदान वायौ पंचात्मके प्राणो रौक्ष्यव्यायामलधनैः।
अर्थ-अतिगमन, अतिध्यान,अतिकीडा, अत्याहाराभिघाताध्ववेगोदीरणधारणैः।। कुंपितश्चक्षुरादीनामुपधातं प्रवर्तयेत्।।
अत्यन्त विषम चेष्टा, विरोधी और लक्ष भो. पीनसार्दिततृट्कासश्वासादींश्चामथान्बहून् जन, भय, हर्ष और विपादादि द्वारा व्यान
अर्थ-प्राण, उदान, व्यान, समान वायु दूषित होकर पुरुषत्व, उत्साह और बल और अपान इनके द्वारा वायु पंचात्मक | का नाश करदेता है । सूजन,मनमें विकलता, होता है इन में से प्राणवायु रूक्षता, व्या. | ज्वर, सर्वांगरोग, निस्तोद, रोमहर्ष, अंगसुप्ति, याम, उपवास, अतिभोजन, अभिवात मार्ग | कुष्ठ, विसर्प, तथा सर्वांगगत अनेक प्रकारके भूमण, मलमूत्रादि के उपस्थित वेगों को | रोगोंको उत्पन्न करता है। रोकना, अनुपस्थित वेगों को उर्णि करना समानवायुके कर्म । इन कारणों से कुपित होकर आंख कान
समानो विषमाजीर्णशीतसंकीर्णभोजनैः ।
करोत्यकालशयनजागराद्यैश्च दुषितः । आदि इन्द्रियों का नाश करदेता है । तथा
शूलगुल्मग्रहण्यादीन पकामाशयजान गदान पीनस, अदित, तृषा, खांसी, श्वास आदि
___ अर्थ-विषम, अजीर्ण शीतल और संअनेक उपद्रवों को करता है।
कीर्ण भोजन करने से, तथा कुसमय निद्रा उदानबायु का कर्म । लेने वा जागनेसे समान वायु कुपित होकर उदानःक्षवथूगारच्छर्दिनिद्रावधारणैः। | शूल, गुल्म, ग्रहणी तथा पक्कामाशय में होने गुरुभारातिरुदितहास्यायैविकृतो गदान् । वाले अनेक रोगोंको उत्पन्न करता है । कंठरोधमनोभ्रंशच्छरोचकपीनसान् । ।
- अपानवायुके कम । कुर्याच्च गलगंडादींस्तांस्तान्ज संश्रयान् ॥ २२॥
अपानो रूक्षगुर्वन्नवेगघातातिवाहनैः। अर्थ-उदानवायु. छींक, डकार, वमन | फुपितः कुरुते रोगान् कृछान् पक्काशयाश्रयान्
| यानयानासनस्थानचंक्र मैश्चातिसेवितैः ॥ और निद्रा के वेग को रोकने से भारी | मूत्रशुक्रप्रदोपार्शीगुदभ्रंशादिकान्बहून् । बोझ उठाचे से, अत्यंत हंसने वा रौने से } अर्थ-रूक्ष और भारी अन्नके खाने से, तथा ऐसे ही अन्य कर्मों से कपित होकर | मलमूत्रादि का वेग रोकने से, सवारीपर अकंठरोध, मनोभ्रंश, वमन, अरुचि, पीनस | धिक वैठनेसे , अधिक चलेनसे, अगभ्यस्थातथा जत्रु से ऊपर होने वाले अनेक रोगों नों में जानेसे, अपानवायु कुपित होकर मूको करता है।
त्र दोष, शुक्रदोष, अर्श और गुदभ्रंश तथा पानवायुका कर्म। अन्य कष्टसाध्य पकाशयगत रोगोंको उत्पन्न च्यानोऽतिगमनध्यानक्रीडाविषमचेष्टितैः। | करता है।
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