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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३०] अष्टांगहृदप । अ. १४ विपादिका के लक्षण । के सदृश लाल ऊंची रेखाओं से व्याप्त तथा .. पाणिपाददार्यों विपादिकाः ।। २३॥ गाढी और वहुतसी लसीका तथा रक्त से तीनायो मन्दकण्ड्वाश्च युक्त और शीघ्र भेदको प्राप्त होजाता है । सरागापिटिकाचिताः॥२३॥ - अर्थ-विपादिका कुष्ठमें हाथ और पांव विस्फोटक के लक्षण । फट जाते हैं । इसको भाषा में बिवाई कहते तनुत्वग्भिश्चितम् स्फोटः सितारणैः२७॥ विस्फोटम्- . हैं। इसमें बडी तीब्र वेदना होती है, खुजली ___अर्थ-विस्फोटक कुष्ठ पतले चमडे से कम चलती है और लाल वर्णकी कुंसियों से | ढका होताहै तथा सफेद और लाल पंसियों व्याप्त होजाता है । से व्याप्त होता है। दद्रु के लक्षण । पामा के लक्षण । . दीर्घप्रताना दूर्वावदातसीकुसुमच्छविः। । पिटिकाःपामा कण्डूले दरुजाधिकाः । उत्सन्नमण्डला ददुः कण्डूमत्यनुषंगिणी २४ | सम्माः स्याव | सूक्ष्माः श्यावारुणा बव्यः प्रायः । , अर्थ-दद्रु वा दाद दूबकी तरह बहुत स्फिक्पाणिकूपरे ॥२८॥ जगह में फैल जाता है, यह अलसीके फूल के ___ अर्थ-कंडू, केद और वेदनासे युक्त फुसमान दिखाई देता है, इसमें ऊंचे ऊंचे गो- सियों को पामा कहते हैं। इस रोगमें प्रायः ल चकत्ते होते हैं । इसमें खुजली बहुत च- स्फिक् , हाथ और कोहनियों में छोटी छोटी लती है और यह फैलता ही चलाजता है। धूम् और और लालवर्णकी वहुतसी फुसियां . शतारु के लक्षण । होजाती है ।। स्थूलमूलम् सदाहाति रक्तश्यावं बहुव्रणम् । चर्मदलके लक्षण । शतारुः क्लेदजम् त्वाढयम् प्रायश: सस्फोटमस्पर्शसहम् कण्डूषातोददाहवत् । पर्वजन्म च ॥ २५ ॥ रक्तम् दलरुचर्मदलम्अर्थ-शतारु नामक कुष्ठकी जड बहुत ___ अर्थ-चर्मदल नामक कुष्ठमें लाल वर्ण मोटी होती है, तथा रंग लाल वा श्याव होता की फुसियां होजाती है, हाथको नहीं सह है, यह वहुत घाव, केदता और कीडोंसे युक्त सकताहै तथा कंडू, ऊपा, सोद और क्षय होता है और प्रायः अस्थिके जोडोंमें होताहै। होताहै, इसमें मांस गलकर गिर पडताहै । ... पुंडरीक के लक्षण । काकण के लक्षण । रक्तांतमंतरा पांडु कण्डूदाहरुजान्वितम् । सोत्सेधमाचितम् रक्तैःपद्मपत्रमिवांशुभिः॥ काकणम् तीवदाहरुक् ॥ २९ घनभूरिलसांकासृक्यायमाशु विभेदि च । | पूर्वरक्तम् व कृष्णं च काकणंतीफलोपमम् । पुंडरीकम् कुष्ठलिंगैर्युतं सर्वेनैकवर्ण ततो भवेत् ६०॥ अर्थ-पुंडरीक नामक कुष्ठ के किनारे । अर्थ-काकण नामक कुष्ठ में तीबदाह लाल और वीचका माग पांडु वर्ण होता है, और शूल होताहै । यह चिरमिठी के रंगके कंडू, दाह वेदना से युक्त तथा कमलके पत्तों | समान पहिले लाल और काले रंगका होता For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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