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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब०१४ निदानस्थान भाषाटीकासमेत । (४२९) विचर्चिका। वहुस्राव और वहु क्रमियों से युक्त होता है | आभा के समान होता है उसे एककुष्ठ इसके किनारे चिकने और पीतवर्ण के होते } कहते हैं । सुश्रत में लिखा है जिसका हैं और देहपर गोल चकत्ते पड जाते हैं । संपूर्ण देह काला वा लाल होता है उसे इसे मंडलकुष्ठ कहते हैं। एककुष्ठ कहते हैं खरनादने भी लिखा है बिचर्चिका के लक्षण । महदस्वेदनं मत्स्यशकलाकारमेकजं । एक सकण्इपिटिका श्यावा लसीकाढया शब्दका अर्थ मुख्य है यह क्षुद्र कुष्ठों में अर्थ-विचर्चिका नामक कुष्ठ श्याववर्ण, प्रधान है इसलिये इसे एककुष्ठ कहते हैं। खुजली और पिटकाओं से युक्त होता है इसमें लसीका अर्थात् चेप बहुत होता है । किटिभ के लक्षण । किटिभम् पुनः ॥२०॥ क्षजिह्व के लक्षण । .../ रूक्षम् किणखरस्पर्श कण्डूमत्परुषासितम् । परुष तनुरक्तांतमंतःश्यावं समुन्नतम् १८ ॥ | __ अर्थ- जो कोढ रूखा, सूखा हुआ, सतोददाहरुकूक्लेदं कर्कशैः पिटिकौश्चितम् ।। ऋक्षजिह्वाकृतिप्रोक्तमृक्षजिवम् क्षतस्थान की तरह छूने में खरदरा, खुजली वहुक्रिमि ॥ १९ ॥ से युक्त, कर्कश और काला होताहै उसे अर्थ-ऋष्यजिह्वनामक महाकुष्ठ खर- | किटिभ कुष्ठ कहते है। स्पर्श, पतला, किनारे पर लाल, वीच में | सिध्म कुष्ठ । काला, ऊंचा, सुई छिदने कीसी वेदना से | सिध्मं रूक्षम् बहि स्निग्धमंतष्टम्युक्त, दाह, पीडा, क्लेद, और कर्कश पिड ___रजः किरेत् ॥ २१ ॥ श्लक्ष्णस्पर्श तनुश्वततानं दौग्धिकपुष्पवत्। कामों से युक्त होता है । इसकी आकृति प्रायेण चोर्ध्वकाये स्यात् रछकी जिह्वा के सदृश होती है इसलिये अर्थ-सिध्मकुष्ठ बाहर से रूखा, भीतर इसे ऋष्यजिह्व कहते हैं । इसमें कीडे से चिकना होता है, इसको रिगडने से बहुत पड़ते हैं। भुसी सी झडने लगती है । यह छूने से चर्मकुष्ठ के लक्षण । चिकना, पतला, सफेद वा तांबे के रंगका हस्तिचर्मखरस्पर्श चर्म अलाबु के फूल के सदृश होता है, यह अर्थ-हाथी के चमडे के समान छूनेमें रोग प्रायः देह के ऊपरके भागमें होताहै। खरदरा चर्म कुष्ठ कहलाता है। . एककुष्ठ के लक्षण । अलसक के लक्षण । एकाख्यम् महाश्रयम्। ररलसकम् गंडैः कण्डूयुतैश्चितम् ॥ २२ ॥ अस्वदम् मत्स्यशकलसंनिभम् अर्थ-जिस कुष्ठ का स्थान लंबा चौडा अर्थ-अलसक कुष्ठमें खुजली और लाल पसीनेरहित, तथा मछली के टुकडे की सी | वर्ण की पिटका होती हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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