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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १३ निदानस्थान भाषाटीकासमेत । सूजनके नौ भेद । लवणक्षारतीक्ष्णोष्ण शाकांबु स्वप्नजागरम् हेतुविशेषस्तु रूपभेदान्नवात्मकम्।२२। मृद्माम्यमांसवल्लूरमजीर्णश्रममैथुनम् २६ दोषैः पृथग्यैः सर्वैरभिघाताद्विषादपि। पदातेर्मार्गगमनम्यानेन क्षोभिणाऽपि वा। अर्थ-हेतुविशेष अर्थात् भिन्न भिन्न का. श्वासकासातिसारार्थीजठरप्रदरज्वराः२७। विषूच्यलसकच्छर्दिगर्भवीसर्पपांडुताः। रणों से सूजन नौ प्रकारकी होती है, यथा. | अन्ये च मिथ्यापकांतास्तैदोषा वक्षसिवातज, पित्तज, कफज, वातापत्तन, वातक स्थिताः ॥ २८॥ फज, पित्तकफज, त्रिदोषज, अभिघातज ऊर्ध्व शोफमधोबस्ती मध्ये कुर्वति मध्यगा। और विषज । सर्वांगगाः सर्वगतम् प्रत्यंगेषु तदाश्रयाः२९ सूजनको द्विविधत्व । ___ अर्थ ज्वर आदि ब्याधिसे क्षीण, वमनद्विधा वा निजमांगतुं सर्वांगैकांगजं च तम् । विरेचन निरूहण अनुवासन और आस्थापपृथूनतग्रथितताविशेषैश्च त्रिधा विदुः।। नादि पंचकर्म से क्षीण, उपवास द्वारा क्षीण . अर्थ-निज और आगंतु भेदसे शोफ दो | निज और आगंत भेदसे शोफ दो तथा ऐसेही मार्गपर्यटनादि अन्य कारणों भागोंमें विभक्त होती है, एक निज ( वाता- से क्षीण मनुष्य सहसा गुदि निम्नलिखित दि दोषजनित ), दूसरी आगंतुज ( चोट | द्रव्योंका सेवन करलाहै और सुस्थ पुरुष भी आदि लगनेसे उत्पन्न ), अन्य रीतिसे भी यदि प्रमाणसे अधिक भारी, खट्टे, चिकने शोफके दो विभाग हैं, यथा- सर्वागज और । शीतल, नमकीन, खारी, तीक्ष्ण वा उष्णएकांगज। तथा पृथुता, उन्नतत्व और प्रथितत्व वीर्य द्रव्य, शाक, दूषित जल, दिवानिद्रा, इन तीन भेदों से शोफ तीन प्रकार के होते | रात्रिजागरण, मृत्तिका, चटककुकुटादि, ग्राहैं । अर्थात् कोई सूजन पृथु अर्थात् बहुत म्य जीवोंका मांस, सूखा मांस, अजीर्ण में जगह में फैल जाते हैं । कोई ऊंचे होजाते भोजन, अतिरिक्त परिश्रम, मैथुन, पैदल हैं और कोई गांठदार होजाते हैं । चलना, शरीरमें क्षोभ करनेवाले ऊंट घोडे शोफका सामान्य हेतु । आदि पर चढना, इन कामों को करता है, सामान्यहेतुः शोफानां दोषजानां विशेषतः।। तथा श्वास, खांसी, अतिसार, अर्शरोग, अर्थ-सब प्रकारकी सूजनों के उत्पन्न | जठररोग, प्रदररोग, ज्वर, विसूचिका, अलहोने का सामान्य हेतु अगले श्लोकमें कहा | सक, वमन, गर्भविसर्प, पांडुरोग, तथा अन्य जायगा । यही दोषज शोफोंके उत्पन्न होने रोग भी जिनकी चिकित्सा शास्त्रोक्त विधि का प्रधान देता है। विशेष शब्दसे यह दिखाया | से नहीं कीगई है, ये सब सूजन की उत्पगया है कि आगंतुशोफोंका हेतु यह नहीं है। त्तिके हेतु है । सूजनके उत्पन्न करनेवाले - स्थान विशेषमें शोफोत्पति। कारणों से वातादि दोष वक्षःस्थल में स्थित च्याधिकमार्पवासादिक्षागस्य भजतो द्रुतम।। होकर देहके उर्वभाग में सूजन उत्पन्न अतिमात्रमथान्यस्य गुर्वलस्निग्धशीतलम्। करतेहैं । वस्तिमें स्थित होकर नीचे के For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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