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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४२९) अष्टांगहृदय । म. १३ भागमें, मध्यम में स्थित होकर मध्यभाग में | सतृड्दाहज्वरस्वेददवक्लवमदभ्रमः। सर्वोग में स्थित होकर संपूर्ण देहमें और | शतिाभिलाषी विभेदी गन्धी स्पर्शासहोप्रत्यंग में स्थित होकर शरीर के प्रत्येक | मृदुः ॥ ३४॥ __ अर्थ-पित्तज शोफ में पीले काले रंग अवयव में सूजन उत्पन्न करदेते हैं । का आभास होता है, इसमें शरीर के रोम शोफका पूर्वरूप । कुछ ताम्रवर्ण के हो जाते हैं, यह शीघ्रही तत्पूर्वरूपम् दवथुः सिरायामोऽगगौरवम् ।। - अर्थ-जिस मनुष्य के सूजन होनेवाली बढता है और शीघ्रही शांत होजाता है, होतीहै उसके दवथु (नेत्रादिमें तीन ऊष्मा ) यह प्रथम शरीर के मध्य भाग में होताहै, सिराओंका फैलना, और देहमें भारीपन तथा पतलापन लिये होता है । तृषा, दाह, ये पूर्वरूप होतेहैं। | ज्वर, स्वेद, ताप, केद, मद, भूम, शीतल यातजशोफ। वस्तु की इच्छा, मलका भेद, दुर्गधि, स्पर्श वाताच्छोक चलो रूक्षःखररोमारुणासितः| का न सहना, और कोमलता ये सब लक्षण संकोचस्पन्दहर्षार्तितोदभेदप्रसुप्तिमान् ।। उपस्थित होते हैं। क्षिप्रोत्थानशमः शीघ्रमुन्नमत्पीडितस्तनुः॥ कफज शोफ । खिग्धोष्णमर्दनैः शाम्येद्रात्रावल्पो दिवा- । कण्ड्मान् पांडुरोमत्वक्कठिनः शीतलो गुरुः - महान् । स्निग्धः श्लक्ष्णः स्थिरः स्त्यानोत्वकच सर्षपलिसेव तस्मिचिमिचिमायते निद्राच्छाग्निसादकृत् ॥ ३५ ॥ अर्थ-वातज शोफ में चंचल रूक्ष, | आक्रांतो नोन्नमेत्कृच्छ्रशमजन्मा निशावलः खररोम ( रोमोंमें खरखरापन ] लाल काला स्रवेन्नास्कृचिरापिच्छाशोफ उत्पन्न होताहै, इसमें संकोच, स्पंदन फुशशस्त्रांदिविक्षितः ॥ ३६॥ स्पर्शीष्णकांक्षी च कमात्( फडकना ), हर्ष ( रोमांच खडे होना ), ' ___अर्थ-कफज शोफ में खुजली, रोग और बेदना, सुई छिदने कीसी पाडा,भेद, सुन्नता त्वचा में पांडुता, कठोरता, शीतलता, भाराहोतीहै । यह शीघ्रही उत्पन्न होतीहै और पन, स्निग्धता, श्लक्ष्णता, स्थिरता, और शीघ्रही शांत होजातीहै दवाने के पीछे हाथ स्त्यानता होती है । इससे निद्रा, वमन और हटा लैनेपर शीघ्र ऊंचा होजाताहै, पतला अग्निमांद्य होता है । इस शोफ के बढने होताहै, स्निग्ध और उष्ण मर्दन करनेसे और घटने में बहुत समय लगता है । यह शांत होजाताहै, रात्रिमें और दिनमें बडा 1 दवाने से नीची होजाती है पर हाथ हटा होनाताहै । त्वचा पर सरसों का सा लेप लेने से फिर ऊंची नहीं उठती है, यह मालूम होताहै तथा चिमचिमाहट होतीहै । शोफ रात में बल पकडजाती है। कुशपत्र वा शोक रात में बल पर पित्तज शोफ। शस्त्रादि द्वारा घाव करने से इसमें से रक्त नहीं पतिरक्कासिताभासः पित्तादाताम्ररोमकृत्। शीघ्रानुसारप्रशमोमध्ये प्राग्जायते तनुः३३ | निकलता है, परंतु बहुत देर पछि पिच्छल For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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