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निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
अ०११
पूर्वरूपसे की जाती है। जो प्रमेह का पूर्वरुप | दिखाई न देतो रक्तपित्त समझना चाहिये । प्रमेह का पूर्वरूप | Faisaगन्धः शिथिलत्वमंगेशय्यासन स्वप्नसुखाभिषंगः । जिह्वाश्रवणोपदेहोariगता केशनखातिवृद्धिः ॥ ३८ ॥ शीतप्रियत्वं गलतालुशोषोमाधुर्यमास्ये करपाददाहः । भविष्यतो मेहगणस्य रूपस्मृत्रेऽभिधावति पिपीलिकाश्च ३९ ॥ अर्थ - पसीना, देह में गंध, अंग में शिथिलता, शय्या, आसन और निद्रा में अत्यन्त सुख का अनुभव, हृदय नेत्र, जिह्वा और कान में उपलिप्तता, घनांगता, केश और नखकी अत्यंत वृद्धि, शीतल वस्तुओं के छूने वा खाने की इच्छा, कंठ और तालु में शुष्कता, मुख में मीठापन, हाथ और पांव में जलन, ये सब प्रमेह के पूर्वरूप हैं और जिस जगह रोगी मूत्र करता है वहां चींटियां दौड़कर आती हैं ।
प्रमेह में द्विविधविचार | दृष्ट्वा प्रमेहम् मधुरम् सपिच्छम् । मधूपमम् स्याद्विविधो विचारः । संतर्पणाद्वा कफसंभवः स्यात्क्षीणेषु दोषेष्यनिलात्मको वा ॥ ४० ॥ अर्थ - प्रमेहरोग में मूत्रको मधुर के सदृश मिष्ट और शाल्मली ( सेमर ) के गोंद के सदृश पिच्छिल देखकर मंदबुद्धि वैद्य के मनमें दो प्रकार का विचार पैदा होता है। एक तो यह कि अतर्पणसाध्यमेह कफ से उत्पन्न हुआ है अथवा दूसरा यह कि कफादि दोषों के क्षीण होने से संतर्पण -
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साध्य मेह वात से उत्पन्न हुआ है। परंतु कुशाप्रवुद्धिवाला केवल मूत्रके ही मधुरादि गुणों को नहीं देखता है किन्तु अन्य लक्षणों को देखकर स्थिर रहता है कि यह प्रमेह कफज है, वा वातज है । मेहका साध्यत्व ! सपूर्वरूपाः कफपित्तमेहा:क्रमेण ये वातकृताश्च मेहाः । साध्या न ते पित्तकृतास्तु याप्या:साध्यास्तु मेदो यदि नातिदुष्टम्, ४ अर्थ- स्वेदोंगगंधादि संपूर्ण पूर्वरूपों से युक्त कफज प्रमेह औरं पित्तज प्रमेह असाध्य होते हैं । तथा क्रमसे हुए अर्थात् जो प्रथम कफप्रमेह, तदनंतर पित्तप्रमेह, इसी तरह कालांतर में वातप्रमेह होजाते हैं, में भी असाध्य होते हैं । इसका सारांश यह है कि कफजमेह समक्रियत्व होनेसे साध्य और पितज प्रमेह असमकियत्व होनेसे याप्य होते हैं। परंतु यदि ये भी संपूर्ण पूर्वरूपसे युक्त होतो असाध्य होते हैं । और यदि मेद अत्यन्त 1 दुष्ट न हो तो पित्तज प्रमेह जो याप्य होता है वह भी साध्य होजाता है । इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषा टीकायां निदानस्थाने प्रमेह निदानंनामदशमो
ऽध्यायः ।
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एकादशोऽध्यायः ।
अथाऽतो विद्रधिवृद्धिगुल्मनिदानम्
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व्याख्यास्यामः ।