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अ १०
निदानस्थान भाषाटीकोसमेत ।
( ३९७.)
ही वायुसे पीडित हों तो बड़ी कठि- प्रमेह की उत्पत्ति ॥ नता से पीला, लाल, सफेद और गाढा मूत्र तेषां मेदोमूत्रकफावहम् ॥ १॥ जलन हो हो कर निकलता है । अथवा उ.
अन्नपानक्रियाजातं यत्प्रायस्तत्प्रवर्तकम् ।
स्वाद्वम्ललवणस्निग्धगुरुपिच्छिलशीतलम्। स का रंग सूखे हुए गोरोचन वा शंखके
| नवधान्यसुरानूपमांसागुडगोरलम्। चूर्णके समान होता है अथवा कभी सब रं- एकस्थानासनरतिः शयनं विधिवाज॑तम् । गों का होजाता है । इसे मूत्रसाद कहते हैं । ___ अर्थ-मेद, मूत्र और कफको उत्पन्न अध्याय का उपसंहार
करनेवाली जितनी अन्नपान और क्रिया हैं, इति विस्तरतः प्रोक्ता रोगा मूत्राऽप्रवृत्तिजाः वे सब प्रमेह रोगको उत्पन्न करनेवाली हैं, निदानलक्षणरूर्व वक्ष्यतेऽतिप्रवृत्तिजाः “। जैसे मधुर, अम्ल, लवण, स्निग्ध, गुरु, अर्थ-मूत्रके स्वाभाविक रीतिसे न नि
पिच्छिल और शीतल अन्नपान, तथा नवीन कलने के कारण उत्पन्न हुए रोगोंका निदान
अन्न, सुरा, आनूप मांस, ईख, गुड, गोरस और लक्षणों सहित विस्तार पूर्वक वर्णन कर
एक स्थानपर और एक आसन से बैठेरहना दिया गया है अब मूत्रकी अतिप्रवृत्तिसे उ.
और विधिवार्जत शयनकरना, ये सब प्रमेत्पन्न होने वाले रोगोंका वर्णन करेगें।
होत्पादक हैं, कहाभी है ' अकालेऽतिप्रसंइतिश्री अष्टांगहृदयंसंहितायां भाषा
| गाच्च नच निद्रा निषेविता । सुखायुषी पराटीकायां निदानस्थाने मूत्रा
कुर्यात् कालरात्रिरिवापरेति । घातनिदानंनाम
कफसे प्रमेहोत्पत्ति ॥ नवमोऽध्यायः।
बस्तिमाश्रित्य कुरुते प्रमेहान् दूषितः कफः। दूषयित्वा वपुः क्लेदस्बदमेदोरसामिषम् ।४।
___ अर्थ - दूषित कफ वस्तिस्थानका आश्रय दशमोऽध्यायः।
लेकर शरीर, क्लेद, स्वेद, मेद, रस और
मांसको दूषितकर के प्रमेह रोगों को उत्पन्न अथाऽतः प्रमेहनिदानं व्याख्यास्यामः ।। करता है।
अर्थ:-अब हमयहांसे प्रमेह निदान ना । पित्त से प्रमेहोत्पत्ति ॥ मक अध्यायकी व्याख्या करेंगे । पित्त रक्तमपि क्षीणे कफादौ मूत्रसंश्रयम्। प्रमेह के भेद ।
___ अर्थ-कफादि सौम्य धातुके नष्ट होजा"प्रमेहा विंशतिस्तत्र श्लप्मतो दश पित्ततः। नेपर दूषित पित्त मूत्रसंश्रित रक्तको और षट् चत्वारोऽनिलात्
ऊपर कहेहुए शरीर क्लेद और स्वेदादिको ___ अर्थ-प्रमेह बीस प्रकारके होते हैं । इ
दूषित करके प्रमेह रोगोंको उत्पन्न करताहै। न में से कफसे दस, पित्तसे छः और वात
वातसे प्रमेहोत्पति॥ से चार प्रकार के होते हैं।
धातून बस्तिमुपानीय तत्क्षयेऽपि च मारुतः
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