SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 488
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थान भाषाटीकासमेत । (३९१) हृद्रोग, गुल्म, अर्श, प्लीहा और पांडुरोग अर्थ-सान्निपातज ग्रहणी में तीनों की शंका करने लगताहै । तथा रोगी को दोषों के मिले हुए लक्षण होते हैं । बडे कष्ट से देरमें दस्त आताहै । दस्त होने | ग्रहणीमें अग्नि को हेतुत्व । में गुदामें दर्द होताहै, श्वास खांसी उठतेहैं। विभागेऽगस्य येचोक्ता विषमाद्यास्त्रयोऽग्नयः पित्तज ग्रहणी । | तेऽपि स्युर्ग्रहणीदोषाः । पित्तन नील पीताभं पीतामः सृजति द्रवम्। समस्तु स्वास्थ्यकारणम् । अर्थ-अंगविभाग नामक अध्याय में पूत्यम्लोद्गारहत्कंठदाहारुचितृडर्दितः।। विषम, तीक्ष्ण और मंद तीन प्रकारकी अ___ अर्थ-पित्तज ग्रहणी रोगमें रोगी पीला पडजाताहै और उसे पीला नीला पतला ग्नि कही गई हैं, ये भी ग्रहणी रोगके का रण ही हैं, इनमें से समाग्नि स्वस्थता का दस्त होताहै । यह गेगी दुर्गंधित खट्टी डकार, हृदय और कंठमें दाह, अरुचि और कारण है । शंका- ऐसा कहनेसे ग्रहणी सा. त प्रकारकी होती हैं, उत्तर । मुख्य प्रहणी तृषा से पीडित रहताहै। कफज ग्रहणी। पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति आदि उक्त लक्षणोंसे प्रलेष्मणा पच्यते दुःखमन्नं छदिररोचकः ॥ युक्त ग्रहणी चारही प्रकारकी है । ये तीन आस्योपदेहनिष्ठीवकासहल्लासपीनसाः। । ग्रहणी रोगके आभासमात्र हैं। हृदयं मन्यते स्त्यानमुदरं स्तिमितं गुरुः २७ ग्रहणी के महारोग। . उद्गारो दुष्टमधुरः सदनं स्त्रीष्वहर्षणम् । वातव्याध्यश्मरीकुष्ठमहोदरभगंदराः। भिन्नामलेप्मसंसृष्टगुरुवर्चः प्रवर्तनम् २८ ॥ अर्शासि ग्रहणीत्यष्टौ महारोगाःसुदुस्तराः। अकृशस्यापि दौर्बल्यम् । ___ अर्थ-वातव्याधि, अश्मरी, कुष्ठ, प्रमेह, ___ अर्थ-कफज ग्रहणी रोग में अन्न बडी | उदररोग, भगंदर, भर्शरोग और ग्रहणी ये कठिनता से पचता है, छर्दि, अरोचक, आठ महारोग बड़े भयंकर होते हैं इसलिये मुख में लिहसावट, निष्ठी बन, खांसी, ह. इनमें यत्नपूर्वक चिकित्सा करनी चाहिये । ल्लास, और पीनस ये उपद्रव · होते है । इतिश्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां हृदय पिंडितसा मालूम होता है, उदर अतिसारग्रहणीरोग निदानंनाम निश्चल और भारी होजाता है । डकार अष्टमोऽध्यायः। बुरी और मीठी आती हैं, देहमें शिथिलता होती है, स्त्रियों में से प्रसन्नता जाती रहती नवमोऽध्यायः। है, फटाहुआ आम और कफ मिला हुआ भारी दस्त होता है तथा मनुष्य पुष्ट होने पर भी दुर्बल रहता है । अथाऽतो मूत्राघातनिदानं व्याख्यास्यामः । सान्निपातज ग्रहणी । अर्थ--अब हम यहांसे मूत्राघातनिदान सर्वजे सर्वसंकरः।। नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy