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अ० ८
. निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
[ ३८९ )
पित्तातिसार के लक्षण । । भयज और शोकज अतिसार । पित्तेन पीतमसितं हारितं शादुलप्रभम्। भयेन क्षोभिते चित्त सपित्तोद्रावयेच्छकृत् । सरतमात दुर्गधं तृण्मृ स्वेदशाहवान् । ८। बायुस्ततोऽतिसार्येत क्षिप्रमुष्णं द्रवं प्लवम् । सशूलपायुसंतापं पाकवान
थातापससमं लिंगराहुस्तद्वश्च शोकतः। __अर्थ-पित्तातिसारमें पीला, काला, हरा, अर्थ-भयसे चित्त के क्षोभित होनेपर हरी दूबके समान, रुधिरमिश्रित, अत्यन्स पित्तसे संयुक्त वायु मलको पतला करदेता दुर्गंधयुक्त, दस्त होता हैं , दस्तोंसे रोगांकी | है, तदनंतर वात पित्तके लक्षणोंसे युक्त गुदामें दर्द होने लगता है। तथा गुदामें सं- गरम, पतला, प्लवतायुक्त जल्दी जल्दी मल ताप और पाक भी होता है । तथा तृषा, निकलताहै । शोकज अतिसार के लक्षणभी मूर्छा, स्वेद, और दाह ये भी होते हैं। भयज अतिसार के समान होते हैं । कफातिसार के लक्षण।
अतिसार के दो भेद । लष्मणा घनम। अतीसारःसमासेन द्विधा सामो निरामकः। पिच्छिलं तंतुमछ्वेतस्निग्धांसंकफान्वितम सासनिरस्नः अभीक्ष्णं गुरु दुर्गधं विबद्धमनुबद्धरुक् ।।
___अर्थ-संक्षेप से अतिसार दो प्रकार का निद्रालुरलसोऽनविडपाल्पं सप्रवाहिकम्। होता है एक साम, दूसरा निराम । तथा एक सरोमहर्षः सोक्लेशो गुरूवस्तिगुदोदरः। । सरक्त, दूसरा निरस्र । कृतेऽप्यकृतसंबध
साम के लक्षण । अर्थ- कफातिसार में गाढा, पिच्छिल,
तत्राऽद्ये गौरपादप्सु मजति । तंतुओंसेयुक्त, सफेद, स्निग्ध, मांस और
शकृढुंगंधमारोपविष्टंभार्तिप्रसेकिनः । १४ । कफयुक्त, बार वार, भारी ( जलमें डूबजाय )
___अर्थ-आमातिसार में मल बडा दुर्गदुर्गंधयुक्त, बिवद्ध, निरंतर वेदनायुक्त,
धित होताहै, और जल में डालनेसे डूबजाता प्रवाहिका से युक्त थोडा थोडा दस्त होता
है । रोगी के पेटमें गुडगुडाहट, बिष्टंभ, वे. है । इसमें रोगीको निद्रा, आलस्य, अन्नमें
दना और मुखप्रसेक होता है । अनिच्छा, रोमहर्ष और उत्क्लेश होता है ।
निरामातिसार । वस्ति, गुदा और उदरमें भारापन होताहै ।
विपरीतो निरामस्तु कफात्पक्वोऽपि मजति।
___ अर्थ-निरामके लक्षण सामसे विपरीत दस्त होनेके पीछे भी ऐसा मालूम होता रह
होते हैं, कफजन्य होने के कारण पक्व होने ताहै कि दस्त नहीं हुआ है।
परभी जलमें डूब जाता है । सान्निपातिक अतिसार ।
ग्रहणी रोग के लक्षण । सर्वात्मा सर्वलक्षणः॥ ११॥ | अतीसारेषु यो नातियत्नवान् ग्रहणीगदः । अर्थ--जो अतिसार त्रिदोष से होता है, | तस्य स्यादग्निविध्वंसकरैरत्यर्थसेवितैः । उसमें तीनों दोषोके लक्षण पाये जाते हैं।। अर्थ-जो अतिसार में बड़ी सावधानी
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