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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय । य० ७ .. संसृष्ट और निचय अर्श । तेन तीया रुजा कोष्ठपृष्ठहत्पार्श्वगा भवेत् । संसृष्टलिंगाः संसर्गात् आध्मानमुदरावेष्टो हल्लासःपरिकर्तनम् ॥ निचयालवलक्षणाः॥ ४२ ॥ वस्तौ च सुतरां शूलंगडः श्वयथुसंभवः । अर्थ-जो अर्श वातादि दो दो दोषों से | पवनस्योगामित्वं ततश्छद्यरुचिज्वराः ॥ उत्पन्न होती है उसमें दो दो दोषों के मिले हृद्रोगग्रहणीदोषमूत्रसंगप्रवाहिकाः । बाधिर्यतिमिरश्वासशिरोरुकासपीनलाः ॥ हुए लक्षण होते हैं और जो तीन दोषों से मनोविकारस्तृष्णास्रपित्तगुल्मोदरायः। अपन्न होती है उसमें तीनों दोषों के लक्ष- ते तेच वातजारोगा जायते भृशदारुणाः ॥ ण होते हैं। दुर्नाम्नामित्युदावतः परमोऽयमुपद्रवः। रक्तज अर्श। घाताभिभूतकोष्ठानां तैर्विनाऽपिस जायते ॥ रक्कोल्बणागुदे कीलाः पित्ताकृतिसमन्विताः अर्थ-मुंग, कोदों, ज्वार, चना,मसूरादि वटप्ररोहसदृशा गुञ्जाविदुमसन्निभाः ४३ तेऽत्यर्थ दुष्टमुष्णं च गाढविप्रतिपीडिताः। | रूक्ष और संग्राही भोजनों से अपान वायु सवंति सहसा रक्तं तस्य चातिप्रवृत्तितः॥ वस्ति आदि अपने स्थान में बलवान् और भेकामः पीड्यते दुःखै शोणितक्षयसंभवैः। कुपित होकर अधोवाही स्रोतों को रोकदेती हीनवर्णबलोत्साहो हतौजाः कलुपेद्रियः ॥ है और मलको ऐसा शुष्क करदेती है कि __ अर्थ-रक्तज गुदांकुर के लक्षण पित्तज मलमूत्र किसी प्रकारनिकालेसेभी नहीं निकलते अर्श के लक्षणों के समान होते हैं, इनकी आकृति बट के अंकुरों के सदृश गुंजा वा हैं ऐसा होनेपर कोष्ठ, पीठ, हृदय और विद्रुमकी कांति के समान होती हैं । गुदा पसली में बडी तीव्र वेदना होने लगती है। द्वारा गाढा वा कठोर मल निकलने के अफरा, उदर में ऐंठन, हल्लास, परिकर्तन, कारण मस्सों से गरम गरम दूषित रक्त । घस्ति देश में दारुण शूल, गंडस्थल में अधिकता से निकलता है । और रक्त के सूजन, वायुका उर्ध्वगमन, तथा वायुके अत्यन्त निकलने से रोगी मेंडक के सदृश ऊर्ध्वगमन से उत्पन्न वमन, अरुचि, ज्वर पीला पड़ जाता है, तथा रक्तक्षयजनित | हृद्रोग, ग्रहणी दोष, मूत्ररोग, प्रवाहिका, रोग से पीडित होकर अनेक दुःख उठाता बहरापन, तिमिर, श्वास,शिरोवेदना,खांसी, है ऐसे रोगी के बल, वर्ण, उत्साह और पीनस, मनोविकार, तृषा, रक्तपित्त, गुल्म, ओज सब नष्ट होजाते हैं, संपूर्ण इन्द्रियां - उदररोग तथा अन्यान्य वातज भयंकर रोग कलुषित होजाती हैं। उत्पन्न होजाते हैं । तथा अर्शरोग का मुद्गादि सेवन से बातादि का प्रकोप । उदावर्त नामक भयंकर और प्रधान उपद्रव मुद्कोद्रवर्णावकरीरचणकादिभिः। रूसंग्रादिभिर्वायुः स्वस्थाने कुपितोबली उत्पन्न होजाता है । किसी प्रकार का वाअधोनहानिस्रोतांसि संरुध्याधः प्रशोषयन् तजविकार कोष्ठ में होने से भी अर्शरोगके पुरीषं वातविण्मूत्रसङ्गम् कुर्वीत दारुणम् ॥ | बिनाही उदावर्त रोग होजाता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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