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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. ७ निदानस्थान भाषाटीकासमेत । [३८५ ] क्षण में वेदना अधिक होती है । छींक, कफज अर्थ के लक्षण । डकार, विष्टंभ हृदयग्रह, अरुचि, खांसी, श्लेष्मोल्वणा महामूला धना मंदरुजा सिताः श्वास, विषमाग्निं, कर्णनाद, और भूम ये | उच्छनोपचिता:स्निग्धाःस्तब्धवृत्तगुरुस्थिराः | पिच्छिलाः स्तिमिताःश्लक्ष्णा कण्ड्वाडयाः, उपस्थित होतेहैं । इस रोगमें गांठदार, स्पर्शनप्रियाः ॥३८॥ प्रवाहिका के लक्षणोंसे युक्त झागदार पिच्छि- | करीरपनसास्थ्याभास्तथा गोस्तनसन्निभाः लताविशिष्ट बहुतसा विष्टा धोडा थोडा वंक्षजानाहिनः पायुवस्तिनाभिविकर्तिनः॥ निकलताहै । मल त्यागके समय अत्यन्त सकासश्वासहल्लासप्रसेकारुचिपनिसाः। मेहकृच्छशिरोजाड्यशिशिरज्वरकारिणः ।। वेदमा और शब्द होताहै । इस रोगीके नख, क्लैब्याशिमार्दवच्छर्दिरामप्रायविकारदाः । त्वचा, मल, मूत्र, नेत्र और मुख काले पड वसाभाःसकफप्राज्यपुरीषाःसप्रवाहिकाः॥" जाते हैं । इसी रोगसे गुल्म प्लीहा, उदररोग | न नवंति न भिद्यते पांडुस्निग्धत्वगादयः॥ और अष्ठीला की उत्पत्ति होजातीहै। अर्थ-श्लेष्मजनित अर्श में गुदांकुरों की पित्तज अर्श के लक्षण | जड़ मोटी, घन, अल्पवेदनायुक्त और पित्तोत्तरा नीलमुखा रक्तपीतासितप्रभाः ॥ | सफेद रंगकी होती है । ये उत्पन्न फूलेहुए तन्वननाविणो विनास्तनबो मृदवःश्लथाः स्थूल, स्निग्ध, स्तब्ध, गोल, भारी, स्थिर, शुकजिहबायकृत्खण्डजलौकावक्रसन्निभाः दाहपाकज्वरस्वेदतृण्मासचिमोहदाः। पिच्छिल, स्तिमित और श्लक्ष्ण होते हैं। सोमाणो द्रवनीलोष्णपतिरक्तामवर्चसः॥ | इनमें खुजली वहुत चलती है और हाथ यवमध्या हरित्पतिहारिद्रत्वङ्नखादयः।। फेरने से सुख प्रतीत होता है । इसका ___ अर्थ-पित्तकी अधिकता वाले गुदांकुर | आकार करीलफल पा पनसकी गुठली वा । नीलमुख, लाल पीली काली क्रांति से युक्त | गोस्तन के सदश होता है । इस अर्श में होते हैं । इनमेसे पतला रक्त निकलताहै, दोनें। वक्षणों में अफरा, गुदा वस्ति और ये आमगंधसे युक्त, सिरसके फूल के समान | नाभि में कतरने कीसी पीडा, खांसी,श्वास कोमल, स्विन्न मांसवत् श्लथ होतेहैं, इनका | हुल्लास, प्रसेकं, अरुचि, पीनस, प्रमेह, आकार तोते की जीभ, यकृतखंड वा जोक मूत्रकृच्छ्र, सिर में जडता, शीतज्वर की के मुखके सदृश होताहै । इसमें दाह, पाक उत्पत्ति, क्लीवता, अग्निमांद्य, वमन, और ज्वर, स्वेद, तृपा, मूर्छा, अरुचि और मोह | आमदोष के विकार उत्पन्न होते हैं। उपस्थित होतेहैं । इसमें उष्णतायुक्त, अशरोगी चर्वी के सदृश, कफमिश्रित प्रपतला, नीला, पीला, लाल और कच्चा मल वाहिका लक्षणयक्त वहुत सा मल त्याग निकलताहै । ये जौ की तरह बीचमें मोटे | करता है । इसमें रक्तका स्राव नहीं होता होते हैं। पित्तज बवासीरवाले रोगी का । है न ये फटते हैं, रोगी के त्वचा, नख, मुख, त्वचा, नख, नेत्रादि हरे पीले वा । मुख नेत्र आदि पांडुवर्ण और स्निग्ध हो हलदीके से रंगके होजाते हैं। जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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