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अष्टांगहृदय ।
अ.
६
- अर्थ-वातजमूर्छा रोगमें रोगी आकाश | अर्थ-त्रिदोष के संपूर्ण लक्षणेसेि युक्त में लाल काला वा नीला रंग देखता हुआ | मदात्यय में रोगी अपस्मार की तरह मूछित अंधकार में डब जाताहै अर्थात मर्छित हो । होकर गिर पडताहै, अंतर केवल इतनाही जाताहै, तथा थोडीही देर में मूर्छा जाती है कि अपस्मार में रोगी की चेष्टा भयंकर रहतीहै तब हृदयमें पीडा, धुकधुकी, भ्रम | होजाती है, इसमें नहीं होती है। कृशता, श्यावता, वा अरुण रंगकी कांति हो सन्यास के लक्षण । जाती है ।
दोषेषु मदमूर्छायाः कृतबेगेपु देहिनाम् ।। पित्तज मूर्छा का लक्षण ।
स्वयमेवोपश्याम्यति सन्यासो नौषधैर्विना पित्तेन रक्तं पीतं वा नभः पश्यन् विशेत्तमः।
___अर्थ-मनुष्यों के मद और मूर्छा रोग विबुध्येत चसस्वेदो दाहतृट्तापपीडितः ॥
वेगोंके होचुकने पर औषध के बिना अपने भिन्नविण्नीलपीताभो रक्तपीताकुलेक्षणः। | आपही शांत होजाते हैं परन्तु सन्यास सेग ___अर्थ-पित्तजमूर्छा रोगमें रोगी आकाश औषध के बिना शांत नहीं होता है । में लाल और पीला रंग देखता हुआ मूर्छित | सानिपातिक सन्यास । होजाताहै मूर्छासे चेत होते समय पसीना वाग्देहमनसां चेष्टामाक्षिप्यातिबला मलाः। दाह, तृषा, संतापसे पीडित होताहै उसका | सन्यासं सन्निपतिताः प्राणायतनसंश्रयाः । पुरीष फटजाताहै, देह का वर्ण नीले वा
कुर्वति तेन पुरुषः काष्ठभूतो मृतोपमः।
म्रियेत शीघ्रं शीघ्र चेच्चिकित्सा न प्रयुज्यते पीले रंगका होजाताहै, नेत्रमें लाल वा पीला
____ अर्थ-वातपित्तकफ ये तीनों दोष अ. रंग और आकुलता होतीहै ।
त्यन्त कुपित होकर एकही कार्य करने के कफज मूर्छाके लक्षण । कफेन मेघसंकाशं पश्यन्नाकाशमाविशेत् ।।
लिये उद्यत हुए वाणी मन और देहकी तमधिराच्च बुध्येत सहृल्लासःप्रसेकवान् ।
चेष्टाओं का नाश कर देते हैं और हृदय गुरुभिः स्तिमितैरंगरार्द्रचर्मावनद्धवत् ३४॥ का आश्रय लेकर सन्यास रोग को उत्पन्न . अर्थ-कफज मूर्छा रोगमें रोगी मेघवर्ण करते हैं, इस रोग में मनुष्य काष्ठ की आकाश को देखते देखते मूछित होजाताहै तरह मुर्दे के समान होजाता है और यदि यह रोगी बहुत देर में होशमें आताहै । होश चिकित्सा करने में शीघ्रता न की जाय तो में आनेके समय हल्लास और लालास्राव मरभी जल्दी जाता है। होताहै और रोगी को अपना देह गीले शीप्रचिकित्सा से जीवन । चमडे से लिपटा हुआ सा भारी मालूम
अगाधे ग्राहबहुले सलिलौघे इवातटे । होताहै ।
सन्यासे विनिमजतं नरमाशु निवर्तयेत् ॥ सन्निपातसे निश्चेष्टता ।
अर्थ-मकरादि प्राणियों को हरने वाले सर्वाकृतिस्त्रिभिर्दोषैरपस्मार इवाऽपरः। । जीवों से व्याप्त तटहीन अगाधजलराशि में पातयत्याशु निश्चेष्टंविना बीभत्सटितः॥ गिरे हुए मनुष्य को निकालने में - जैसे
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