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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. १ निदानस्थान भाषाटीकासमेत । (३७९) रोग होते हैं, ये तीनों रोग रस, रक्त और ) अर्थ-त्रिदोषज मद में तीनों दोषों के घेतनावाही स्रोतों के रुकजाने से होते हैं। मिलित लक्षण होते हैं। इनमें मद से मूर्छा और मूर्छा से सन्यास रक्तज मद । 'उत्तरोत्तर बलवान होते हैं। रक्तात्स्तब्धांगदृष्टिता। पित्तलिंगं च मद के भेद । अर्थ-रक्तज मदमें अंगमें स्तब्धता, मदोऽत्र दोषैःसर्वेश्च रक्तमद्यविषैरपि। दृष्टि में स्तब्धता तथा पित्तज मद के लक्षण अर्थ-मद सात प्रकार के होते हैं, | | होते हैं। यथा-वातज पित्तज, कफज, सन्निपातज रक्तज, मद्यज और विषज । मधज मद । मोन विकृतेहा स्वरांगता । बातज मद । अर्थ-मद्यज मदरोग में चेष्टा, स्वर सक्तानल्पद्रुताभाषश्चलः स्वलितचेष्टितः ॥ और अंग में विकृति होती है। रूक्षश्यावारुणतनुर्मदे वातोद्भवे भवेत् ।। विषजमद । अर्थ वातज मद में रोगी की वाणी विषे कंपोऽतिनिद्रा च सर्वेभ्योऽभ्यधिकंठमें सक्त, अल्प और वेग से निकलतीहै, __ कस्तु सः। उसकी चेष्टा चलायमान और स्खलित होती ___ अर्थ-विषजमदमें कंपन और अतिनिद्रा है । देह में रूक्षता, श्यावता और लालिमा | होती है, यह मद सब मदोंसे अधिक वलहोती है। बान होता है। पित्तज मद। रक्तादि में वातादि की पहिचान । पित्तेनक्रोधनोरक्तपीताभः कलहप्रियः।। लक्षयेल्लक्षणोत्कर्षादातादीन शोणितादिषु। अर्थ-पित्तज मदमें रोगी क्रोधयुक्त, अर्य-रक्तज, मद्यज और विषज इन रक्तवर्ण, पीतवर्ण और कलह करनेमें प्रसन्न तीन प्रकार के मदरोगों में जिस जिस दोष होता है। की अधिकता होतीहै वह उसी उसी दोषके नामसे बोलने में आताहै और उसी उसी कफज मद । दोषके अनुसार चिकित्सा भी करनी चाहिये स्वल्पासंघद्धवाक्पांडुः कफावधानपरो जैसे वाताधिक रक्तजमद, पित्ताधिक रक्तज ऽलसः। अर्थ-कफज मद में रोगी थोडा और मद, वाताधिक मयजमद, वाताधिक विषज मद, इत्यादि। असंबद्ध भाषण करता है, पांडुवर्ण ध्यानमें । " वातज मूर्छा का लक्षण । मग्न और आलसी होता है । अरुणं कृष्णनीलं वा खं पश्यन्प्रविशेत्तमः । सनिपातज मद । शीघ्रं च प्रतिबुध्येत हृत्पीडा वेपथुर्भमः । सर्वात्मा सन्निपातेन | कार्य श्यावारुणा छाया मूगये मारुतात्मके For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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