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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अष्टfinger | ( ३७६ ) पुरुषार्थ मनुष्य कर्तव्याकर्तव्यसे अज्ञान होकर मद्य द्वितीय वेग को अधिक सुखकर मानता है कोई कोई यह भी अर्थ करते हैं, कि मद्य द्वितीयवेग में मनुष्य सुखसे अधिकतर अलग होजाता है । मदकी निंदनीय अवस्था । मध्यमोत्तमयोः संधि प्राप्य राजसतामसः । निरंकुश इव व्यालो न किंचिन्नावरेजङ : ५॥ अर्थ : रजोगुणी वा तमोगुणी मनुष्य, मध्यम और उत्तम की संधि अर्थात द्वितीय औरं तृतीय मदकी मध्यावस्था में पहुंचकर अंकुशरहित मदोन्मत्त हाथी की तरह कुछभी शुभ नहीं करता है + | उक्त अवस्था में दुर्गति | इयं भूनिरवद्यानां दौः शील्यस्येदमास्पदम् । एकोऽयं बहुमार्गाया दुर्गतेर्देशिकः परम् ॥ अर्थ - यह मद्यावस्था निंदनीय मनुष्यों की भूमि अर्थात् आकर और दुःशीलता की आस्पद है । एक मात्र यह मदिरा अनेक मुखवाली दुर्गति की आचार्य अर्थात् उपदेशक है । मद की तीसरी अवस्था । X विश्वेष्टः शववच्छेते तृतीये तु मंदे स्थितः । मादा पापात्मा गतः पापतरां दशाम् ७ ग्रंथांतर में लिखा है कि सात्विके शौचदाक्षिण्यहर्षमंडनलालसः । गीताध्ययन सौभाग्यसुरतोत्साहकृन्मदः । राज स दुःखशीलत्वमात्मत्यागं सुसाहसं । कलहं सानुबंधंच करोति पुरुषेमदः । अशोचनिद्रामात्सय्यागम्यागमनलोलतः । असत्यभाषणं चापि कुर्याद्वैताम से मद इति । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ६ अर्थ - मदकी तीसरी अवस्थामें पहुंचकर मनुष्य कायक, वाचक और मानसिक तीनों प्रकार की चेष्टाओं से रहित अर्थात वेहोश होकर मुर्दे के समान पडजाता है । यह पापात्मा मरने से भी बुरी दशा में पहुंच जाता है, क्योंकि मरने पर तो मनुष्य दूंसरा देह धारण करके सुखभोग कर सकती है, परंतु मदकी तृतीयावस्था को प्राप्त मनुष्य अन्य शरीर धारण करने के अभाव से कुछ भी सुखका अनुभव नहीं कर सकता है, इसलिये यह दशा मरण से भी बुरी है । मद्य धर्माधर्म का अज्ञान । धर्माधर्मे सुखं दुःखमर्थानर्थ हिताहितम् खदासको न जानाति कथं तच्छीलयेद्बुधः॥ अर्थ = मद्यमें आसक्त मनुष्य दानाध्ययनदेवगुरुपूजादिक धर्म और अहिंस्नादि अधर्म के बिचार से शून्य होजाता है, उसे सुख दुख वा हिताहित का ज्ञान नहीं रहता है । फिर कौन बुद्धिमान मनुष्य ऐसी मदिरा का अभ्यास करेगी । For Private And Personal Use Only अति मद्यपान का फल | मद्ये मोहोभयं शोकः क्रोधो मृत्युश्च संश्रिताः सोन्मादमदमूर्छायाः सापस्मारापतानकाः॥ यत्रैकः स्मृतिविभ्रंशस्तत्र सर्वमसाधु यत् । अर्थ - अति मद्यपानसे मोह, भय, शोक क्रोध, मृत्यु, उन्माद, मद, मूर्च्छा, अपस्मार अपतानक, ये सन दुर्घटना उपस्थित होतीहै, अधिक कहने से क्या प्रयोजन है जिस मदिरा से एक स्मृति का नाश होजाता है वहां शुभ कुछ भी नहीं रहता है X x ओजस्यविहते पूर्वो हृदि च प्रति
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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