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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
आधे द्वे वर्जयेदंत्ये सर्वलिंगां व वेगिनीम् ॥ सर्वाश्च संचितामस्य स्थविरस्य व्यवायिनः व्याधिभिःक्षीणंदेहस्य भक्तच्छेदक्षतस्य वा ॥ अर्थ - इन पांच प्रकार की हिचकियों में पहिली दो अर्थात् अन्नजा और क्षुद्रा, साध्य होतीं है, पिछली दो अर्थात् महाहिमा गंमीर तथा तीसरी सर्व लक्षण संयुक्त यमला ये तीनों असाध्य होती हैं । केवल येही असाध्य नहीं होती है ।
किन्तु चिरकाल की हिचकी वृद्धमनुष्य की हिचकी अतिस्त्रीसेवी की हिचकी, व्याधिद्वारा क्षीण देहवाले की हिचकी, अन्न के अभाव से कृश मनुष्य के उत्पन्न हुई हिचकी ये सब असाध्य होती है ।
उक्त रोगों में चिकित्सा कर्तव्य | सर्वेऽपि रोगा नाशाय नत्वेवं शीघ्रकारिणः हिमाश्वासौ यथा ती हि मृत्युकाले - कृतालयौ,, ॥ ३१ ॥ अर्थ - यावन्मात्र संपूर्ण रोग प्राणों के नाश करने वाले हैं परंतु श्वास रोग और हिचकी प्राणों के नाश करनेमें जितनी शीघ्रता
करता हैं उतना कोई दूसरा रोग नहीं करता । इसीलिये उक्त दोनों रोग मरने के समय अवश्य होते हैं, इसलिये इनकी चिकित्सा में शीघ्रता करना आवश्यकीय है ।
इति चतुर्थोऽध्यायः ।
पञ्चमोऽध्यायः ।
अथातो राजयक्ष्मा निदानं
[ ३६७ ]
अर्थ- - अब हम यहां से राजयक्ष्मानिदान नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे ।
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राजयक्ष्मा के चार नाम । " अनेकरोगानुगतो बहुरोगपुरोगमः । राजयक्ष्मा क्षयः शोषो रोगराडिति च स्मृतः
अर्थ- जैसे राजा आगे पीछे बहुत से मनुष्यों से घिरा रहता है, वैसेही राजयक्ष्मा भी ज्वर अतीसारादि रोगों से घिरा रहता है यह ज्वर गुल्मादि सब रोगों में प्रधान है । राजयक्ष्मा, क्षय, शोष और रोगराज ये चार इसके पर्य्यायवाची शब्द हैं ।
राजयक्ष्मादि संज्ञाओं का कारण । नक्षत्राणां द्विजानां च राशोऽभूद्यदयं पुरा । यच्च राजा च यक्ष्मा च राजयक्ष्मा ततो मतः । ceivक्षयकृतेः क्षयस्तत्सभवाच्च सः । रसादिशोषणाच्छोषो रोगराट् तेषु राजनात् अर्थ - प्राचीनकाल में तारागण और द्विजातियों के राजा चन्द्रदेव के यह रोग हुआ था और यह सब रोगों का राजा है इसलिये इसे मुनिवर राजयक्ष्मा कहते हैं । यह देह और औषध दोनों का क्षय कर देता है तथा देह और औषध के क्षय होने ही से इसकी उत्पत्ति है, इसलिये इसे क्षय कहते हैं । यह रसादि धातुओं का शोषण करलेता है इसलिये इसे शोष कहते हैं,
+ कहते हैं कि चन्द्रमा रोहिणी पर अत्यन्त आसक्त था, इसलिये अन्य नक्षत्रों ने अपमानित होकर अपने पिता दक्षसे कहा, किंतु चन्द्रमाने अपने श्वशुर दक्षको मिथ्या बातों से धोखा दिया, इसलिये उस ने क्रुद्ध होकर शाप दिया कि तुझे क्षय
रोग होगा। इसी से चन्द्रमा के राजयक्ष्मा
व्याख्यास्यामः । होगया था ।
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