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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . [३६६) अष्टांगहृदय। अ०४ - हिमा ( हिचकी ) को उत्पन्न करती है, महाहिमा के लक्षण । इसमें वेदना नहीं होती है, शब्द भी मंद | स्तब्धभ्रशस्खयुग्मस्य सानाविप्लुतचक्षुषः होता है, और इसके साथ छींक भी आती स्तंभयती तनुषाचं स्मृति संज्ञांच मुष्णती । हैं । यह हिचकी सात्म्य अन्नपानके सेवन रुंधतीमार्गमन्त्रस्य फुर्वतीमर्मघट्टनम् २ ॥ पृष्ठतो नमनं शोषं महाहिमा प्रवर्तते । से शांत होजाती है। महामूला महाशब्दा महावेगा महाबला २७ . क्षुद्रा के लक्षण। __ अर्थ-महा हिंक्का दोनों भकटी और आयासात्पवनानुद्राक्षुद्रां हिमांप्रवर्तयेत्॥ दोनों कनपटियों को जकड देतीहै दोनों जत्रुमूलप्रविसृतामल्पवेगां मृदुं च सा ।। वृद्धिमायास्यतो याति भुक्तमात्रे च मार्दवम् | नेत्रों में आंसू और चंचलता उत्पन्न करती अर्थ-व्यायामादि परिश्रम से वाय अल्प है । देह और वाणी को स्तब्ध करती है, कुपित होकर क्षुद्रा नामकी हिचकी को स्मृति और संज्ञा का नाश कर देती है, अउत्पन्न करतीहै, यह जत्रु अर्थात् कंठ और न्नवाही मार्ग को रोक देती है । हृदया-, वक्षःस्थल के मध्य भाग से उत्पन्न होकर दि ममों में चालना करती है, पीठको झुका अल्पवेग और. मृदु भाग में प्रवृत्त होती देती है और सब देह को शुष्क करती है । है, यह परिश्रम करने से बढ जाती है इन लक्षणों से युक्त महाहिका की प्रवृत्ति और भोजन करने से शांत हो जाती है। होती है यह महामूला, महाशब्दा, महावगा यमला के लक्षण । और महावला होतीहै, इन विशेषणोंसे इस चिरेण यमलैवेगैरांहारे या प्रवर्तते । की असाध्यता ज्ञात होती है,यह शीघ्र प्राणों परिणामोन्मुखे वृद्धिं परिणामे च गच्छति ॥ को हरलेती है। कंपयंती शिरोग्रीवामाध्मातस्यातितृष्यतः। गंभीरा के लक्षण । प्रलापश्छद्युतीसारनेत्रविप्लुतंजभिणः २४ ॥ पक्काशयादा नाभेर्वा पूर्ववद्या प्रवर्तते । यमलां वेगिनी हिमा परिणामवती च सा । तद्पा सा मुहुः कुर्याजंभामंगप्रसारणम् ।। - अर्थ-यमला नामकी हिचकी, देर देर गम्भीरणानुनादेन गंभीरीमें दो दो मिलकर आती हैं, जब आहार अर्थ-गंभीरानामकी हिचकी पक्वाशय पाकोन्मुख होता है, अथवा पक जाता है | वा नाभि से प्रबृत होती है, इस के सब तब ये हिचकियां आने लगती हैं ये लक्षण उक्त महाहिध्मा के लक्षणोंसे मिलते सिर और ग्रीवा को कंपित करदेती है। हैं। इसमें बार वार जंभाई और अंगप्रसायमल हिकामें आध्मान, अत्यन्त तृषा, प्र- रण ये दो लक्षण अधिक होते है। इस में लाप, वमन, अतिसार, नेत्र विप्लव, जंभाई / घंटा के शब्द के समान गंभीर नाद होता ये उपद्रव होते हैं । इस प्रकार की हिचकी | है, इसीलिये इसका नाम गंभीरा है । के तीन नाम हैं। यथा, यमला, वेगिनी हिचकियों में साध्यासाध्यत्व। और परिणामवती ॥ तासु साधयेत् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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