SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. ३ निदानस्थान भाषाटीकासमेत । [३६१ ] अर्थ-सब प्रकार की खांसी चिकित्सा | अर्थ-निदान के भेदसे खांसी के उत्पन किये जाने पर क्षय को उत्पन्न करदेती । न करनेवाले बलवान् वायुका प्रतिघात भेद हैं । इन पांच प्रकारकी खासियोंमें उत्तरोतर | होता है इसी लिये सब प्रकार की खासियों वलवान हैं । अर्थात वातकी खांसी से पित्त । में शूल और शब्द, भिन्न भिन्न प्रकार के की, पित्तकी खांसी से कफकी इत्यादि । होते हैं। कास का पूर्णरूप । बातकास का निदान । तेषांभविष्यतां रूपं कण्ठे कंडूररोचकः १८ / कुपितोवातलैर्वातःशुष्कोरः कण्ठवक्त्रताम् शुकपूर्णाभकण्ठत्वम् हृत्पाोरःशिरःशूलं मोहक्षाभस्वरक्षयान् । __ अर्थ-कास रोग के उत्पन्न होने से | करोति शुष्कं कासंच महावेगरुजास्वनम् ॥ पहिले कंठमें खुजली, तथा अरुचि होती है सोऽगहर्षी कर्फशुष्कं कृच्छ्रान्मुक्त्वाऽल्पता व्रजेत् । और गला ऐसा घिरा हुआ मालूम होताहै __अर्थ-अत्यंत वालकारक हेतुओं से वायु जैसे जौ के तुषों से घिर जाता है । कुपित होकर वक्षःस्थल, कंठ और मुखमें कासरोग की संप्राप्ति । शुष्कता ( खुश्की ) करता है । हृदय, पतत्राधो बिहतोऽनिलंः।। सली, वक्षःस्थल और सिरमें शूल उत्पन्न ऊर्ध्व प्रवृत्तःप्राप्योरस्तस्मिन् कण्ठेचसंसजन् शिसस्रोतांसि संपूर्य ततोऽगान्युत्क्षिपन्निव। करता है । मोह, क्षोभ और स्वरमें क्षीणता क्षिपन्निवाक्षिणी पृष्ठमुरःपार्चेच पीडयन् ॥ करता है तथा बडे वेग, पीडां और शब्द प्रवर्तते स वक्त्रेण भिन्नकांस्योपमध्वनिः। के साथ अंग में रोमहर्ष करता हुआ सूखे अर्थ-सब प्रकार के कासरोगमें वायु कफको कठिनता से निकालकर थोडी देर नीचे विशेष रूप से हत होकर ऊपरको के लिये आराम करदेता है। प्रत होतीहै, तदनंतर क्रमसे हृदय में पहुं. पित्तकास का निरूपण । चकर कंठ में संसक्त होजातीहै, तदनंतर पित्तात्पीताक्षिकफता तिक्तास्यत्वं ज्वरोसिर के स्रोतों में भरकर पीछे संपूर्ण अंगों भ्रमः ॥ २४॥ को ऊपर की ओर फेंकती है। आग्ने बा- पित्तासृग्वगमनम् तृष्णा वैस्वर्य धूमको मदः । हर को निकालती है, पीठ, वक्षःस्थल और प्रततं कासवेगेन ज्योतिषामिवं दर्शनम् २५ पसली में पीड़ा करती हुई फूटे हुए कांसी अर्थ-पित्तकीखांसीमें आंख और कफ पीले के पात्रकी सी ध्वनि करती हुई मुखसे पडजाते हैं। मुखमें तिक्तता, अर, म्रम, पिनिकलती है। त्तरक्त की वमन, तृषा, स्वरमें विकार, मुख ___ खांसी में अनेक शब्द । से धूआं सा निकलना, मद, तथा खांसी के | निरंतर वेगके कारण आंखोंके साम्हने तारेसे हेतुभेदात्प्रतीघातभेदोवायोःसरहसः२१॥ यदुजाशब्दवैषम्यं कासानां जायते ततः। । दिखाई देना । ये सब वाते उपस्थित होती हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy