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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय । अ०३. शोधनं प्रातलामें चरक्तपित्ते भिषग्जितम् ॥ | शांत होजाताहै परंतु अधोगामी रक्तपित्त अर्थ-रक्तपित्त रोग में प्रतिलोमगामी के प्रकोपक वायुको प्रकोपित्त करदेताहै शोधन ही औषध है अर्थात जो ऊर्ध्वगामी । उभयमार्गगामी रक्तपित्त के शमन करने के रक्तपित्त हो तो विरेचन और अधोगामी हो । लिये नृसिंह रूपवत् कोई ऐसी औषध नहीं तो वमन दी जाती है, परंतु उभयमार्ग- जो इसका शमन करती हो, इसलिये यह गामी रक्तपित्तका प्रतिलोमही नहीं है जोवमन । असाध्य है। देतेहैं तो रक्तपित्त की ऊपर को प्रवृति होती है दोषानुगमन के लक्षण । और बिरेचन देते है, तो नीचे को प्रबृति तत्र दोषानुगमनम् सिरान इव लक्षयेत् । होती है इस हेतु से उभयमार्गगामी रक्त- | उपद्रवांश्च विकृतिज्ञानतःपित्त में प्रतिलोमगामी संशोधन औषध का अर्थ-रक्तपित्त में पातपित्त कफका अ. अभाब है । अत एव यह असाध्य होताहै । नुबंध इस तरह जानना चाहिये जैसे सिग व्यध में रक्त के काले, लाल और रूक्षादि रक्तपित्तमें संशमन का अभाव ।। एवमेवोपशमनं सर्वशो नास्य विद्यते । लक्षणों द्वारा वातादि दोषों का संबंध वर्णन संसष्टेषु हि दोषेषु सर्वजिच्छमनम् हितम् ॥ | किया गया है तथा विकृति विज्ञानीयाध्याअर्थ-जैसे उभयमार्गगामी रक्तपित्त का योक्त रक्तपित्त में होनेवाले उपद्रयों को शमन करने के लिये वमनविरेचन औषधों | जान लेना चाहिये । का अभावहै । वैसेही शमन औषध भी कासको आशुकारित्व । रक्तपित्त का शमन नहीं करसकतीहै । क्यों तेषु चाधिकम् ॥१६॥ आशुकारी यतः कासस्तमेवाऽतःप्रवक्ष्यति। कि संसृष्ट अर्थात् त्रिदोष में सर्वजित् संशमन औषधों का प्रयोग हितकारी होताहै । ___ अर्थ-रक्तपित्त के जो उपद्रव कहे गये वह त्रिदोषनाशक शमन संतर्पण और अप- | हैं, उनमें से खांसी सब में, प्रबल हैं, यह तर्पण भेदोंके द्वारा दो प्रकार का होताहै रक्तपित वाले रोगी को शीघ्र मार डालती इनमेंसे यदि संतर्पण अर्थात् वृंहणकारक है, इसीलिये पहिले इसका वर्णन किया शमन अधोमार्गगामी रक्तपित्त के दोष की जायगा। अपेक्षा करके वायुकी शांतिके लिये दिया खांसी के पांच भेद । | पंचकासाःस्मृता वातपित्तश्लेष्मक्षतक्षयैः।। जाय तो वायुकी शांति तो करदेताहै परंतु ___ अर्थ-खांसी पांच प्रकार की होती है ऊर्ध्वगामी रक्तपित्त विकारकारी कफकी वृद्धि । यथा-बात न, पित्तज, कफज, क्षतज और करदेता है, और यदि ऊर्ध्वगामी रक्तपित्त क्षयज । की अपेक्षा करके कफके शमनके लिये अप- खांसी को क्षयोत्पादकता। तर्पण का प्रयोग किया जाय तो कफ तो | क्षयायोपेक्षिताःसर्व बलिनश्चोत्तरोत्तरम्॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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