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निदानस्थान भाषाकासमेत ।
[३५]
पच्यमान ज्वरके लक्षण। | इसमें भी जिस दोष की आधिकता होती है ज्वरवेगोऽधिकं तृष्णाप्रलापःश्वसनं भ्रमः।
उसी नामसे वह ज्वर बोला जाता है, जैसे मलप्रवृत्तिरुत्क्लेशापच्यमानस्य लक्षणम् ॥ अर्थ-ज्वर की पच्यमान अवस्थामें ज्वर
वातज्वर. पित्तज्वर इत्यादि । । का वेग, तृषा, प्रलाप, श्वास, भूम, मल
संततज्वर की संप्राप्तिके लक्षण ।
धातुमूत्रशद्वाहिस्रोतसां व्यापिनो मलाः। की प्रवृत्ति और उक्लेश इनकी अधिकता तापयंतस्तनुं सर्वी तुल्यदूष्यादिवर्धिताः ५८ होती है।
बलिनो गुरवस्तम्धा विशेषेण रसाश्रिताः । निरामज्वर के लक्षण। संततं निष्प्रतिद्वंद्वा ज्वरं कुर्युः सुदुःसहम् ॥ जीर्णतामविपर्यासात्सप्तरात्रं च लंघनात् ।
___ अर्थ-धातु, मूत्र और विष्टा इनके बह- अर्थ-सामज्वर के लक्षणों से विपरीत ने वाले स्रोतों में व्याप्तहुए संपूर्ण देह को लक्षणों के होने पर ज्वर की जीर्णता जा- तपाते हुए समानगुणविशिष्ट दूष्य पदार्थो . ननी चाहिये । जैसे ज्वरके उपद्रवों में म- तथा देश, ऋतु और प्रकृतिद्वारा वर्द्धित दुता, ग्लानि, अल्पमूत्रता, पक्व मलकी
वलवान, भारी, स्तब्ध, और विशेषरूपसे प्रवृत्ति, क्षुधा की चैतन्यता । इस तरह
रसादि में आश्रित होकर प्रतिद्वन्द्वता से रहित सात रात्रि लंघन करने के पीछे आठवां वातादि दोष दुस्सह संततज्वर को उत्पन्न दिन भी निराम होने का लक्षण है, क्यों
करते है । कि कहा भी है "सप्ताहेन तु पच्यते सप्त
ज्वरोष्मा का मलको क्षपनत्व । धातुगता मलाः । निरामश्चाप्यतः प्रोक्तो
| मलं ज्वरोष्मा धातून्वा सं शीघ्रं क्षपयेत्ततः ज्वरः प्रायोऽष्टमेऽहनि" । अर्थात् रसरक्तादि
___ अर्थ-अनलधर्म बरोष्मा (ज्वरकीगर्मी) सात धातुओं में गये हुए मल सात दिनमें
कभी मल और कभी धातुओंका शीघ्र ही क्षय
करदेती है क्योंकि संपूर्ण वस्तुओं के क्षय पचजाते हैं, इसलिये आठवें दिन ज्वर निराम होजाता है।
करदेने का इसका स्वभावहै । जो ज्वरोज्वर के पांच भद ।
ष्मा मलके क्षयकरने के लिये उद्यत होती ज्वरःपंचविधःप्रोक्तो मलकालबलावलात् ॥
है तो निराम लक्षण से जानी जाती है, प्रायशः सन्निपातेन भूयसातूपदिश्यते । जैसे-संपूर्ण सोतों का असंरोध, बलवत्ता संततः सततोऽन्येास्तृतीयकचतुर्थको ५७ | देह में हलकापन, वायु का अनुलोमन,
अर्थ-बातादि मलों के पूर्वान्हादि काल | वाणी मन और देह के कार्यों में आलस्य - और बलावल के अनुसार ज्वर पांच प्रकार | का न होना, जठराग्नि का उद्दीपन मुखमें का कहा गया है, यथा-संतत, सतत, / विशदता, मूत्रपुरीषादि मलका प्रवर्तन, भूख अन्येा, तृतीयकः चतुर्थक । विशेष करके | का लगना, और अग्लानि । इन लक्षणों ये संततादि ज्वर सन्निपात से ही होते हैं। के उत्पन्न होने से जान लेना चाहिये कि
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