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क्रम से न होनेवाला ज्वर वैकृत होता है, जैसे वर्षा में पित्तज वा कफजज्वर । प्राकृत अवर सुखसाध्य और वैकृतज्वर दुःसाध्य होते हैं; प्राय: प्राकृतज्वर भी जो वात से उत्पन्न होता है दुःसाध्य होता है ।
बसंत में ज्वर का कारण । कफो बसन्ते तमपि वातपित्तं भवेदनु ५२ ॥
वर्षादि ऋतुओं में ज्वरका कारण । वर्षासु मारुतो दुष्टः पित्तश्लेष्मान्वितो ज्वरम् कुर्यात्
पित्तं च शरदि तस्य चानुबले कफः ५० ॥ तत्प्रकृत्या विसर्गाच्च तत्र नानशनाद्भयम् ।
अर्थ-- बंसत कालमें कफ कुपित होकर वरको उत्पन्न करता है तथा वात और पित्त उसके अनुवल होते हैं । वर्षा और शरद में कफ को अनुबलत्व और काल को विसर्गव होने से धातुका उपचय नहीं होता है किंतु वसंतकालमें वातपित्त का अनुवल और आदान काल होने से धातु का अपचय rate होता है । इसलिये बसंत कालमें अनशन से मयकी शंका रहती है ।
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अर्थ - वर्षाकाल में वायुकुपित होकर वरको उत्पन्न करता है तथा पित्त कफ उसके अनुबल होते हैं । शरत्काल में पित्त कुपितहोकर ज्चरको उत्पन्न करता है और कफ उसके अनुबल होता है । इन दोनों के स्वभाव करके उस प्राकृतज्वर में लंघन करने से भय नहीं होता है, पित्त और श्लेष्मा का स्वभाव द्रव है और द्रवधातु लंघन को सहन कर सकते हैं । और काल भी दो प्रकार का होता है एक विसर्गकाल और दूसरा आदानकाल । वर्षा शरद और वसंत ये तीनों ऋतु विसर्गकाल हैं । इस काल में चन्द्रबल की अधिकता से प्राणी स्वाभाविक ही वलिष्ट होते हैं, इसलिये वे उपवासको सहन करसकते हैं, इसी तरह आदानकाल में सूर्यके बल से प्राणी दुर्बल होकर अधिक उपवास को नहीं सह सकते हैं । अनुबल का यह तात्पर्य है कि जैसे कोई स्वतंत्र राजा हाथी रथ, घोडा और सेनाको लेकर किसी बैरी से युद्ध में
हो और पीछे से और सेना
अष्टांगहृदय ।
प्रवृत्त
सहायता को
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अ० २
पहुंचे । इस सहायक सेना का नाम अनुबल है । इसी तरह ज्वरोत्पादक स्वतंत्र पित्त के वलकी वृद्धि शरत्काल में कफ करता है ।
साध्यासाध्य ज्वर के लक्षण । बलवत्स्वल्पदोषेषु ज्वरः साध्योऽनुपद्रवः । सर्वथा विकृतिज्ञाने प्रागसाध्य उदाहृतः ५३॥
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अर्थ- जो रोगी वलवान् हो । ज्वर अल्पदोष से उत्पन्न हुआ हो और कासादि दस उपद्रवों से रहित हो तो सुखसाध्य हो है । जैसे रोगीका जैसा ज्वर असाध्य हो ता है वह विकृतविज्ञानीय शारीराध्याय में वर्णन कर दिया गया है ।
ता
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साम ज्वर के लक्षण | ज्वरोपद्रवतीक्ष्णत्वमग्लानिर्बहुमूत्रता । न प्रवृत्तिर्न विड् जीर्णा न क्षुत्सामज्वराकृतिः अर्थ - इस ज्वर में प्रलाप और भ्रमादिक की तीव्रता, अग्लानि, बहुमूत्रता, मलकी अ प्रवृति, वा अजीर्णता और क्षुधा न लगना ये सब लक्षण प्रकुपित होते हैं ।