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(३५४)
अष्टांगहृदय ।
०२.
खरोष्मा मलका क्षय करने के लिये उद्यत | यही मर्यादा है, कभी कभी कम वा अधिक है। इन लक्षणों से विपरीत स्रोतोरोधादि | भी होजाती है। दोषोपक्रमणीय अध्याय में कहे हुए लक्षणों । इस विषय में हारीत का यह गत है के उत्पन्न होने पर समझलेना चाहिये कि रोगी के वध वा मोक्ष के लिये चौदह, कि ज्वरोष्मा धातुओं का क्षय करनेके लिय अठारह और बाईस दिनकी त्रिदोष की उद्यत है।
| मर्यादा होती है। ___ ज्वरकी स्थिति और अवधि।
संतत ज्वरमें दीर्घ कालकी अनुवृत्ति । सर्वाकारं रसादीनां शुद्धयाऽशुद्धयाऽपिवा क्रमात् ॥ ६०॥
| शुद्धयशुद्धौ ज्वरः कालं दीर्धमप्यनुवर्तते ॥ वातपित्तकफैः सप्तदशद्वादशवासरान् । ।
अर्थ-पूर्वोक्त रसादि धातुओं में ऐसा
अथ ध्वक्तिरसाद प्रायोऽनुयाति मर्यादा मोक्षाय च वधाय च भी हुआ करता है कि कभी मलशुद्ध हो इत्यग्निवेशस्य मतं हारीतस्य पुनः स्मृतिः। जाते हैं धातु शुद्ध नहीं होती, कभी धातु द्विगुणा सप्तमी यावन्नवम्येकादशी तथा ॥
शुद्ध होनाती है, मल शुद्ध नहीं होते कभी एषा त्रिदोषमर्यादा मोक्षाय च वधाय च । __ अर्थ-मल और धातुओं के क्षय के
रसरक्तादि में शुद्धि अशुद्धि रहती है तो कारण से रसादि सातधातु, मल, मूत्र और
इस शुद्धि सहितं अशुद्धि के होने पर संतत तीनों दोष इन बारह पदार्थो को ज्वर की
ज्वर का रोगी के छोडने वा वध करने में ऊष्मा सर्वाकार निःशेष करके शुद्धि वा
उक्त मर्यादा से अधिक समय भी लग अशुद्धि द्वारा वात पित्त और कफकी
जाता है। अधिकता से उत्पन्न हुआ संततज्वर सात,
विषमज्वर के सामान्य लक्षण ।
विषमज्वर क सामान्य दस वा बारह दिन में या तो रोगी को | कृशानां व्याधिमुक्तानांछोडजाता है या मारडालताहै । यह अग्नि
मिथ्याहारादिसविनाम् । वेश का मत है, इस सब कहने का भावार्थ ।
| अल्पोऽपि दोषो दूष्यादेर्लब्ध्वाऽन्यतमतो
बलम् ॥ ६४ ॥ यह है कि ज्वरकी ऊष्मा से रसादि बारह | सविपक्षो ज्वरं कुर्याद्विषमं क्षयवृद्धिभाक् । पदार्थ क्षय, होकर निर्मल शुद्धि होजाती है | अर्थ-व्याधि से मुक्त होने पर कृशतो वातभूयिष्ठ संततज्वर सात दिनमें, पित्त अवस्था में जो मनुष्य मिथ्या आहार बिहार भूयिष्ठ दस दिनमें और कफभूयिष्ठ बारह और औषधि आदि का सेवन करता है उस दिनमें रोगी को छोडजाता है और यदि के देह में अल्पवलवाला वा अपिशव्द से.
अशुद्धि रहती है तौ वातभूयिष्ठ ज्वर सात महा बलवान वातादि में से कोई एक दोष दिनमें, पित्तभूयिष्ठ दस दिनमें और कफ | विषमसंज्ञक ज्वर को उत्पन्न कर देता है, भूयिष्ठ बारह दिनमें रोगी को मारडालता क्योंकि दोष को उस अबस्था में रसरक्ताहै । अधिकतर घर के मोक्ष वा वधकी | दि दूष्य पदार्थों में किसी एक की और देश
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