________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निदानस्थान भाषांटीकासमेत ।
सेवन करने से व्याधिके शांत होनेका नाम | और भी हैं ( जैसे दोषों के आमाशय में उपशय है , इसीका दूसरा नाम सात्म्यभी है प्रवेश होने, आमका अनुगमन करने, तथा
___ अनुपशयके लक्षण । | स्रोतों के रुकजाने से, पक्वाशय से अग्नि विपरीतोऽनुपशयोव्याध्यसात्म्याभिसंशितः के निकलने के द्वारा, उसके ताप से सब
अर्थ-उपशय के यथा निर्दिष्ट लक्षणों देह का बहुत गरम होना इन सब बातों से से विपरीत लक्षणवाले औषव, अन्न, और निश्चय किया जाता है कि यह ज्वर है)। विहार का उपयोग जो दुखकारक होता है, | संपाप्ति के भेद । उसीको अनुपशय अथवा ब्याधिका असा- | संख्याविकल्पप्राधान्यबलकालविशेषतः ॥ रम्य कहते हैं।
सा भिद्यते यथाऽत्रैव वक्ष्यतेऽष्टौ ज्वयाशि संपाप्ति के लक्षण ।
.. अर्थ-संख्या, विकल्प, प्राधान्य, बल यथा दुष्टेन दोषेण यथा चानुविसर्यता । और काल के द्वारा संप्राप्ति के अनेक निवृत्तिरामयस्यासौ संप्राप्तिर्जातिरागतिः। भेद होते हैं, इनमें से संख्या के द्वारा, यथा ___ अर्थ-जिस तरह वातादि दोषों में कोई | ज्वर के आठ भेद होते हैं तथा आगे कहेंगे दोष दुष्ट होकर जिस तरह देह में सन्नि-कि पांच प्रकार की खांसी, पांच प्रकार के वेश विशेष द्वारा गमन करके रोग की उ- श्वास, आठ प्रकार के गुल्म इसी तरह औरं त्पति करता है उसको संप्राप्ति कहते हैं, भी जानो । रोग के जितने भेद होते है, जाति और आगति ये दो नाम संप्राप्ति के | उतनी ही उन की संप्राप्ति भी होती है। मन्न, यथा-यापान अन्न । व्याधि विपरीत विहार, यथा कफज ज्वरमें देह और मनके व्यापार से उपराम।
हेतु व्याधि विपरीत औषध, यथा-वातजनित शोथम वातनाशक और शोथनाशक दशमूल । हेतु ब्याधि विपरीत अन्न, यथा-वात कफजनित ग्रहणीरोगमें वात कफनाशकऔर ग्रह नाशक तकादि । हेतुव्याधि विपरीत विहार, यथा-स्निग्धक्रिया और दिवानिद्रा इनदोनों कारणों से उत्पन्न हुए कफ और तन्द्रारोग में लक्षक्रिया और रात्रि जागरण ।
हेतु विपरीत न होनेपरभी विपरीतार्थकारी औषध, यथा-पित्तप्रधान पच्यमान प्रणशोथ में पित्तकर उष्ण प्रलेप । विपरीतार्थकारी अन्न, यथा-व्रणशोथमें विदाही अन्न का भोजन । विपरीतार्थकारी विहार, यथा-वातोन्मादमें वातकारी बासन ।
' व्याधिविपरीत न होनेपरभी विपरीतार्थकारी औषध, यथा-धमनरोगमें वमनकारक मेनफल । विपरीतार्थकारी अन्न, यथा-अतिसारमै विरेचनके लिये दूध । विपरीतार्थकारी बिहार, यथा-वमनरोगमें प्रवाहन ।
हेतु व्याधि दोनों के विपरीत न होने परभी विपरीतार्थकारी औषध, यथा-विषमें विषका प्रयोग । विपरीतार्थकारी अन्न, यथा-मद्यपानजनित मदात्ययमे मदकारकमधा विहार, यथा-व्यायामजनित मूढवातमें जलतरणरूप व्यायाम ।
For Private And Personal Use Only