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अष्टांगहृदय ।
बात कही गई है कि " सर्वेषामेवरोगाणां | क्षण ऊपर कहचुके हैं ) का ग्रहण है, निदानं कुपिता मलाः " इसलिये जो 'दो- यही रूपधारण करता है, मानस और षविशेषणाधिष्ठितः' कहागया है इस में | शारीर मानस व्यक्तरूप धारण नहीं करते-। स्यक्तरूपदोषापेक्षता जानना चाहिये ।। संस्थान, व्यंजन, लिंग, लक्षण, चिन्ह और .. इसी लिये । लिंग मव्यक्तेत्यादि । कहा | आकृति, ये रूप शब्द के पर्यायहैं । यही गया है, अर्थात् व्याधि के अल्प होने के | नाम पूर्वरूप के भी हो सकते हैं, जैसे पूर्वकारण व्याधि के यथायोग्य स्पष्ट चिन्ह प्र- । संस्थान, पूर्वव्यंजन, पूर्वलिंग, पूर्वलक्षण,पूर्वकट नहीं होते हैं, इसी हेतु प्राग्रूप तीन | चिन्ह और पूर्वाकृति ।। प्रकार का कहा गयाहै यथा-( १ ) शारीर उपशय के लक्षण : (२) मानस और ( ३ ) शारीर मानस | हेतुव्याधिविपर्यस्तविपर्यस्तार्थकारिणाम् ॥ इनमें शारीर प्राग्रूप में ज्वर के पहिले आल- औषधानविहाराणामुपयोग सुखावहम् । स्य, मुख में विरसता, गात्र में भारापन,
विद्यादुपशयंजंभाई, नेत्रों में ललाई और व्याकुलता
व्याधेः स हि सात्म्यामिति स्मृतः ७ ॥ होती है । मानस प्राग्रूप में अरति, हितो
अर्थ-हेतुविपरीत, व्याधिविपरीत,हेतुपदेश में अक्षांति आदि । मिलेहुए शारीर
व्याधि दानों से विपरीत अर्थात् निदान और मानस प्राग्रुप में खट्टे नमकीन और
और रोग दोनों से विपरीत अथवा दोनों से चरपरे पदार्थों में प्रीति और मिष्ट भोजनों
विपरीत न होने परभी किसी विशेषकारण में द्वेष । पूर्वरूप को ही प्राप कहते हैं ।
से विपरीतार्थकारी ( हरीतक्यादि ) औषध, रूप के लक्षण पर्यायादि।
[ रक्तशाल्यादि ] अन्न, और [ व्यवाय, तदेवव्यक्ततांयातं रूपमित्यभिधीयते ॥५॥ | ब्यायाम, जागरण, अध्ययन, गीत, भाषण, संस्थानं व्यंजन लिंग लक्षणं चिन्हमाकृतिः।। ध्यान, धारणादि बाणी देह और मनका ___ अर्थ-व्याधि का वही, उपरोक्त पूर्वरुप चेष्टारूप ] विहार इनका सेवन [ शरीरको ] जब प्रकट हो जाताहै, तब उसे रूप कहते | सुख उत्पन्न करता है अर्थात् हेतु और व्याहैं । यहां शारीर प्राग्रूप ही ( जिसके ल- | धिके विपरीत औषध और आहार विहारका
+ अब हम हेत्वादि से विपरीत औषधानविहार का उदाहरण देते हैं:हेतु विपरीत औषध, यथा-गुरुस्निग्ध शीतजव्याधि में लघुरुक्षोष्ण औषध ।
हेतु विपरीत अन्न, यथा-श्रमजनितवातज्वर में मांसरस के साथ अन्न अथवा संतपणजनित व्याधि अपतर्पण और अपतर्पणजनित ब्याधि संतर्पण । हेतु विपरीतविसार, यथा-जागरणोत्थ व्याधि निद्रा, निद्राजनित व्याधि जागरण । व्यायामजनित व्याधिमे बैठना, अतिबैठेरहने से उत्पन्न व्याधि व्यायाम इत्यादि। - व्याधिविपरीत औषध, यथा-कफजज्वरमें सर्पिःपान औषध । व्याधिविपरीत
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