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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०) अष्टांगहृदय । अ०४ वृहत्यौ मातृकानीले मन्ये कक्षाधरौ फणौ। मांसादि मौंका व्यघलक्षण । विटपेहदयं नाभि पार्श्वसंधी स्तनांतरे४३॥ विद्धऽजनमसृक्नावो मांसधावनवत्तनुः । अपालापो स्थपन्यूय॑श्चतस्रो लोहितानिच पांडत्वमिंद्रियाज्ञानं मरणंचाशमांसजे४७॥ ___ अर्थ-सिरागत सेंतीस मों के ये नाम अर्थ-मांस मर्मके विद्ध होने पर मांस हैं, यथा-दो वृहती, आठ मातृका, दो नीला, के धोवन के जलके सदृश पतला पतला दो मन्या, दो कक्षाधर, दो फण, दो विटप, रुधिर निरंतर निकलता है, शरीर में पीलाएक हृदय, एक नाभि, दो पार्श्वसंधि, दो पन आजाता है, नेत्रादि इन्द्रियों के विषस्तनरोहितं, दो अपालाप, एक स्थपनी, यका ज्ञान जाता रहता है फिर शीघ्र मृत्यु चार उौं, और चार लोहिताक्ष । होजाती है। .. संधि ममों के नाम । अस्थिमर्म विद्ध के लक्षण । सधौविशतिरावर्ती मणिबंधौ कुकुन्दरी ॥ मज्जान्वितोऽच्छो विच्छिन्नस्रावोसीमंतारौिगुल्फो कृकाटयौ जानुनी पतिः रुकूचास्थिमर्मणि। ___ अर्थ-संधिगत बीस मों के ये नाम । अर्थ-शंखादिक अस्थि मर्मों के विद्ध हैं, यथा--दो आवर्त, दो मणिबंध, दो कु- होने पर निरंतर मज्जामिश्रित पतला रक्त कुंदर, पांच सीमंत, दो पर, दो गुल्फ, वहता रहता है और वेदना भी होती है । दो कृकाटिका, दो जानु और एक अधि स्नायुमर्म विद्ध के लक्षण । पति । ये सब मिलाकर एकसौ सात आयामाक्षेपकस्तंभा खावजेऽभ्यधिकं रुजा मर्म हैं। यानस्थानासनाशक्तिवैकल्यमथवांतकः । - अन्य आचार्यों का मत । ___ अर्थ-स्नायुमर्म के बिद्ध होने पर आमांससम गुदोऽन्येषां स्नानी कक्षाधरौतथा याम ( शरीर का लंवा होना ), आक्षेप, विटयौ विदुराख्येच शृंगाटानि सिरासु तु ।। HARAT स्तंभ और अत्यन्त वेदना होती है । चलने, अपस्तंभावपांगौच धमनास्थं नतैस्मृतम् ॥ | वैठने, और खडे होने की शक्ति जाती रह____ अर्थ-किसी किसी आचार्यका मत कुछ | ती है शरीर में विकलता होती है अथवा विषय में अन्यथा है वे कहते हैं | मृत्यु भी होजाती है। कि गुदमर्म मांसाश्रित है धमनी नहीं है । धमनीगत मर्मविद्ध के लक्षण । कक्षाघर और विटप ये मर्म स्नायु गत हैं । | रक्तं सशब्दफेनोष्णं धमनीस्थे विचेतसः ।। सिरागत मर्म नहीं हैं। इसी तरह विधुर अर्थ-अपस्तंभादिक धमनीगत मों के मर्म स्नायुमर्म है, धमनीगत मर्म नहीं है । बिद्ध होने पर मुर्छा आजाती है और शब्द शृंगाटक सिरामर्म है धमनीमर्म नहीं हैं। करता हुआ झागदार रक्त निकलता है । इसी तरह अपस्तंभ और अपांग मर्म भी सिरामर्म विद्धके लक्षण । स्नायुमर्म हैं धमनी मर्म नहीं हैं। सिरामर्मव्यधे सांद्रमजलं ववसृक्नवेत् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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