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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थान भाषाटीकासमेत । [३०९ अर्थ-देह के जिस भाग में विषम अस्थिगत आठ मर्म । स्फुरण होता है, और जहां पीडन करने से | शंखौ कटीकतरुणे नितंबावंसयोः फले ४० अस्थ्न्यष्टौविषम वेदना होती है उसे मर्म कहते हैं। __ अर्थ-अस्थिगत ८ मर्मों के नाम ये हैं, मांस प्रभेद से मर्म के लक्षण । । मांसास्थिस्नायुधमनीसिरासंधिसमागमः ।। यथा- दो शंखमर्म, दो कटीक तरुण, दो स्यान्मर्मेतिचतेनाऽत्र सुतरांजीवितस्थितम । नितंब और दो असफलक | . अर्थ-मांस, अस्थि, स्नायु, धमनी, स्नायुममों के नाम । सिरा और संधि जहां इन सब का समा नाबमर्माणि त्रयोविंशतिराणयः। गम होता है, वही मर्मस्थल है । जैसे जहां जो चक्कूर्चशिरोऽपांगक्षिणोत्क्षेपांसवस्तयः ॥ मांस की पेशियों का समागम है वह मांस । अर्थ-स्नायुगत २३ मर्मों के नाम पे मर्म है, इसी तरह आस्थियों के समागम हैं, यथा-- चार आणिमर्म ( हर एक ऊरु को अस्थि मर्म, स्नायुओं के समागम को में एक एक, प्रत्येक वाहु में एक एक ), स्नायुमर्म, धमनियों के समागमको धमनीमर्म | चार कूर्चमर्म । दो हाथों में,और दो पांवों सिराभों के समागमको सिरामर्म और संधि में ), चार कूर्चसिर ( पांव में दो और हाथ यों के समागमको संधिर्म कहते हैं । इस में दो ), दो अपांग मर्म, चार क्षिप्रसंज्ञक ( अंगठ और उंगली के बीच में ), दो लिये इन मर्म स्थलों में प्राणोंकी स्थिति है। उत्क्षेप ( केशांत में कनपटी से ऊपर ), दो माँकी अनेकता। अंससंज्ञक ( कंधे और अंस पीठ के संबंबाहुल्यन तु निर्देशः षोढैव मर्मकल्पना । प्राणायतनसामान्यादैक्यं वा मर्मणां मतम् ॥ धित ), एक वस्तिसंज्ञक ( मूत्राधार )। अर्थ-जो १०७ मर्म कहेगये है वेही धमनीगत मों के नाम । . प्रधान हैं । तथा जो मांस अस्थि आदि के | गुदोपस्तंभविधुरशृंगाटानि नवादिशेत् । समागममें जो मोंकी कल्पना की गई है | मर्माणि धमनीस्थानिउससे अनेक प्रकारके मर्म हैं परन्तु इन स ___ अर्थ-धमनीगत नौ मर्म होते हैं, यथा ब की कल्पना छः प्रकारके ही अंतर्गत है। एक गुदमर्म ( स्थूल अंत्र से बद्ध ), दो परन्तु जीवनके अधिष्ठानरूप होनेसे मर्मोकी अपस्तंभ नामक, वक्षःस्थल के पार्श्व और एकही प्रकार की कल्पना होती है ॥ अग्निवाहिनी नाडी में स्थित ), दो विधुर मांसगत मर्मों की संख्या। नामक ( कानके नीचे दबे हुए), चार शेमांसजानि दशेद्राख्यतलहृत्स्तनरोहिताः। गाटक ( जीभ, आंख नाक, और कानों के - अर्थ-मांसमर्म ये है । यथा इंद्राख्य चा. मिलनेकी जगह पर )। र, तलहृद चार, और स्तनराहित दा, ये सिराश्रित ममों के नाम । दुस मांसगत मर्म हैं । ... , सप्तविंशत्सिराश्रयाः ॥ ४२ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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