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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०८] - अष्टांगहृदय । अ०४ फणमर्म। । जाय अथवा पककर अपने आप निकल फणाबुभयतो घ्राणमार्गश्रोत्रपथानुगौ। आबे तो रोगी जी सकता है परन्तु शल्य अंतर्गलस्थितौ वेधाद्धविज्ञानहारिणौ ॥ निकाला जाय तो तत्काल मरजाता है। अर्थ-गले के भीतर नासिका के मार्गके शृंगाटक मर्म । दोनों ओर कानों के मार्ग के अनुवर्ती फण जिलाक्षिनासिकाश्रोत्रखचतुष्टयसंगमे । नामक दो मर्म हैं इममें चोट लगने से तालुन्यास्यानि चत्वारि स्रोतसां तेषु मर्मसु घ्राणशक्ति अर्थात् सूंघने की शक्ति जाती विद्धः शृंगाटकाख्येषु सद्यस्त्यजति जीवितम् रहती है। अर्थ-ताल के पास जिस स्थान पर अपांग मर्म । जीभ, आंख, नाक और कान इन चारों नेत्रयोबाह्यतोऽपांगौ भ्रुवो पुच्छांतयारधः । के स्रोत मिलते हैं वहां शंगाटक नामक मर्म तथोपरि भ्रुवोर्निम्नावावर्तावांध्यमेषु तु ३१ है, मर्म में आघात पहुंचने से तत्काल प्राण . अर्थ-दोनों नेत्रों के बाहर की ओर | नष्ट होजाते हैं। भृकुटियों की पुच्छी के नीचे अपांग नामक सीमंत मर्म । कपाले संधयः पंच सीमंतास्तिर्यगूर्ध्वगाः ।। दो मर्म हैं । तथा ऊपर की ओर निम्नरूप भ्रमोन्मादतमोनाशैस्तेषु विद्धषु नश्यति । में अवस्थित आवर्त संज्ञक दो मर्म हैं, इन अर्थ-सिर में जहां पांच कपालों की में आघात पहुंचने से देखने की शक्ति | संधि है वहां तिरछा ऊपर की ओर सीमन्त जाती रहती हैं। नामक मर्म है, उस के विद्ध होने पर भ्रम शंखमर्म । उन्माद और विस्मृति रोग उत्पन्न होकर अनकर्ण ललाटांते शंखौ सद्योविनाशनौ । । रोगी मर जाता है | , अर्थ- कुटियों की पुच्छी के ऊपर ललाट अधिप मर्म । के अंत में कानों के पास शंख नामक दो | आंतरोमस्तकस्योर्ध्व सिरासंधिसमागमः ॥ मर्म हैं, इनमें चोट लगने से मनुष्य | रोमावर्तोऽधिपो नाम मर्म सद्यो हरत्यसून। शीघ्र मर जाता है। । अर्थ-सिरके भीतर ऊपर के भाग में __उरक्षेप और स्थपनी मर्म . जहां सब सिरा और संधियों का समागम केशांते शंखयोर्ध्वमुत्क्षेपौ स्थपनी पुनः ॥ है वहा कशा का है वहां केशों का आवर्त है जिसे भौंरी भ्रुवोर्मध्ये त्रयेऽप्यत्र शल्ये जीवेदनुद्धते। कहते हैं, वहां अधिप नामक मर्म है, यह स्वयं वा पतिते पाकात्सद्यो नश्यति तूंद्धते॥ सब मर्मों का अधिपति है क्योंकि सब मर्म अर्थ-केशों के अंत में कनपटियों के इसके आश्रित हैं । इस मर्म के विद्ध होने ऊपर उत्क्षेपनामक दो मर्म हैं । और दोनों पर तत्काल प्राणों का नाश होजाता है । भकुटियों के मध्य में स्थपनी नामक मर्म है | मों के सामान्य लक्षण । इनमें शल्य लगने से जो शल्य न निकाला . विषमंस्पंदनं यत्र पीडिते रुक् च मर्मतत् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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