________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
[३०७]
पावसधिमर्म ॥
नील और मन्या मर्म । पाश्चतिरनिबद्धौ च मध्ये जघनपार्श्वयोः । | कण्ठनाडीमुभयतः सिरा हनुसमाश्रिताः। तिर्यगूर्व च निर्दिष्टौ पार्श्वसंधी तयोर्व्यधात् चतस्रस्तासु नाले द्वे मन्ये द्वे मर्मणी स्मृते । रक्तपूरितकोष्ठस्य शरीरांतरसंभवः। | स्वरप्रणाशवैकृत्यं रसाशानंच तयधे२७॥
अर्थ-दोनों पार्श्वमें निबद्ध, जघन और अर्थ-कंठनाडी के दोनों ओर हनुके पार्श्वके मध्य भागमें तिरछे और ऊंचेकी ओ- आश्रित चार मर्म हैं, इनमें से दोका नाम र दा संधिनामक मर्म है । इनमें आघात हो- नीला और दो का नाम मन्या है, अर्थात् ने से रोगीके कोष्ठ में रक्त भर जाता है। इस | हर एक पार्श्व में एक नीला और एक मसे उसकी मृत्यु होजाती है ।
न्या है इनमें चोट लगने से स्वरनाश, वृहतीमर्म ।।
स्वरविकृति और रस का स्वाद नष्ट हो स्तनमूलार्जवे भागे पृष्टवंशाश्रये सिरे २३॥ |
जाता है। बृहत्यो तत्र विद्धस्य मरणं रक्तसंक्षयात् ।
मातृका मर्म । ___ अर्थ-पृष्ठवंश के दोनों ओर प्रतिवद्ध, कण्ठनाडीमुभयतो जिह्वानासागताः सिराः। स्तनमूल के अजुभागमें अर्थात् ठीक सीधी
पृयक चतस्रस्ताःसद्योघ्नंत्यसून्मातृकावया ओर वृहती नामक दो मर्म हैं । इनमें चोट
___अर्थ-कंठनाडी के दोनों ओर जिह्वा लगनेसे रक्तस्राव होनेलगे तो मृत्यु हो जाती है।
और नासिका के आश्रित चार चार सिरा
हैं इनमें मातृका नामक मर्म हैं, इनमें चोट अंसफलकामर्म ॥
लगने से तत्काल प्राणों का नाश हो . बाहुमूलामिसंबद्धे पृष्ठवंशस्य पार्श्वयोः॥ असयोः फलके बाहुस्वापशोषौ तयोर्व्यधात्
जाता है। __ अर्थ-पृष्ठवंश के दोनों ओर वाहु के मू- . कृकाटिका मर्म । ल में संबंधित असफलक नामक दो मर्म है कृकाटिके शिरोग्रीवासंधी तत्र चलं शिरः। इनमें चोट लगने से भुजाओं में सुप्तता त
___अर्थ-मस्तक और प्रीवासे संधिभाग में था शोष उत्पन्न होता है।
दोनों ओर को कृकाटिका नामक दो मर्म
हैं, इनमें आघात पहुंचने से शिरःकंप रोग असमर्म ॥
की उत्पत्ति होती है। ग्रीवामुभयतः मानी ग्रीवायाहुशिरोतरे ।। स्कंधांसपीठसंवन्धावंसौ बाइक्रियाहरौ ।
विधुरका ममें। अर्थ-ग्रीवाके दोनों ओर प्रीवा, वाहु अधस्तात्कर्णयोनिम्ने विधुरे श्रुतिहारिणी॥ और सिरके बीचमें कंधे और अंसपीठ के अर्थ-दोनों कानों के पीछे के भाग में - बांधने के निमित्त अंस नामक दो मर्म हैं। नीचे की ओर विधुरनामक दो निम्न मर्म इनमें चोट लगने से फैलाना सकोडना हाथों हैं, इनमें आघात लगने से कानोंकी श्रवणका व्यापार नष्ट होजाता है । | शक्ति जाती रहती है।
For Private And Personal Use Only