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अष्टांगहृदयः।
अं०४
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स्रोतों के मम । | बंशाश्रिते स्फिजोरुवं कटीकतरुणे स्मृते । स्तनरोहितमलाख्ये यंगुले स्तनुयोर्वदत् ।। तत्र रक्तक्षयात्पांडुहीनरूपो विनश्यति १८ ॥ ऊर्ध्वाधोऽस्रकफापूर्णकोष्ठोनश्येत्तयोक्रमात्
____अर्थ-पीठके बांसेके दोनों ओर श्रोणी ' अर्थ-दोनों स्तनों के उपरवाले भाग
और कर्ण नामक दो मर्म हैं। और पृष्ठवंश में में दो अंगुल पर स्तनरोहित नाम दो मर्म हैं | आश्रत नितबक ऊपरवाले भागर्म अर्थात् और स्तनों के नीचे दो अंगुल पर स्तन
कूल्होंमें कटीक और तरुण नामक दो मर्म हैं। मूल नामक दो मर्म हैं इन मर्मों के विद्ध
इनके विद्ध होनेसे रक्तके स्रावके कारण रोगी होने पर मनुष्य का कोष्ठ रक्त पांडुवर्ण और हीनरूप होकर मरजाता है । और कफ से भर जाता है तथा वह धीरे २ कटि वा पार्श्व के मर्म । मरजाता है।
पृष्ठवंशं युभयतो यो संधी कटिपार्श्वयोः । वक्षःस्थल के पार्श्वमें मर्म । जघनस्य वाहिभांगे मर्मणी तो कुकुंदरी १९॥ अपस्तंभावुरः पार्थे नाडयावनिलवाहिनी। चेष्टाहानिरधाकाये स्पर्शज्ञानं चतद्वयधात्। रक्तनपूर्णकोष्ठोऽत्र श्वासात्कासाच्च नश्यति अर्थ--पीठके बांसके दोनों ओर जघन अर्थ-वक्षःस्थल के दोनों पाश्र्व में अ
स्थानके बाहरके भागमें कटि और पार्श्व की पस्तंभनामक दो मर्म होते हैं, इन नाडी मों
| संधियों में कुकुन्दर नामक दो मर्म हैं । उमें होकर वायु आती जाती है इनके विद्ध न के विद्ध होनेपर नीचेका अंग चेष्टाहीन होने से रोगी के कोष्ठ में रक्त भरजाता
होजाता है अर्थात् नीचेके अंगमें चलने फिहै और खांसी, श्वास के रोग से मरजा- रने, पसारने और सकोडने की शक्ति जाती
रहती है और स्पर्श का ज्ञान भी जाता रपीठ के वांसे के मर्म ।
हता है ॥ पृष्ठवंशोरसोर्मध्ये तयोरेव च पार्श्वयोः। । अधोऽसकूटयोर्विद्यादपालापाख्यमर्मणी ॥
नितंबमर्म ॥ तयोः कोष्ठेऽसृजापूर्णे नश्येद्यातेन पूयताम् । पावीतरनिबद्धौ यावुपरिश्रोणिकर्णयोः २० . अर्थ- पीठके बांसे और छातीके मध्यभा | आशयच्छादनौ तौ तु नितंबौ तरुणास्थिगी। गमें दोनों ओर कंधों के अधोभाग में अ- अधः शरीरे शोफोऽत्र दौर्बल्यं मरणं ततः॥ पालाप नामक दो मर्म हैं, इनके विद्व होने
अर्थ-दानों पसलियों में निबद्ध तरुण से कोष्ठ रुधिर से भरजाता है और उसी
नामक अस्थिमें स्थित तथा श्रोणी और करुधिर की राध हो जाने पर रोगी मरजाता। र्ण नामक मोके ऊपर मूत्रादि के समस्त है, जवतक राध नहीं वनती है तवतक
वस्ति आदि आधार में नितंब नामक दो रोगी जीता रहता है यह भावार्थ है।
मर्म हैं । इन मोंके विद्ध होने पर नीचेके पीठकेबांसके पामेंमर्म ।
अंगोंमें प्रथम सूजन होती है फिर निर्बलता पार्श्वयोः पृष्ठवंशस्य श्रोणीको प्रतिष्ठिते । | होकर रोगी मरजाता है ॥
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