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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
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घन ( बीच में जगह नहो ) कोमल, कांति | से युक्त शरीर सौ वर्षतक स्थिर रहता है युक्त, सफेद और समान । जिवा-लाल, तथा दीर्घ जीवन, ऐश्वर्य, तथा संपूर्ण लंबी और पतली । चिवुक -मांसयुक्त और अभीप्सित पदार्थों से युक्त रहता है । बडी । ग्रीवा-हस्व, घन, और गोल । कंधे |
वलके प्रमाण का ज्ञान । ऊंचे और मोटे । उदर-दक्षिणावर्त गंभीर | त्वग्रतादीनि सत्वांतान्यग्राण्यष्टौ यथोत्तरम् नाभिवाला, तथा सुशोभितपने से ऊंचा। वलप्रमाणशानार्थ साराण्युक्तानि देहिनाम् । हाथपांव - पतले और लाल रंग के नखों से | साररुपतः सर्व र
सारैरुपेतः सर्वै स्यात्परं गौरवसंयुतः।
सर्वारंभेषुचाशावान्सहिष्णुःसन्मति:स्थिर। युक्त, स्निग्ध, तांबे के रंगके सदृश, मांसल तथा लंबी और छिद्ररहित अंगुलियोंसे युक्त
अर्थ-शरीरधारियों के बलका प्रमाण जिस मनुष्य के अंग प्रत्यंग उक्तं लक्षणोंसे
| जानने के लिये त्वचा और रक्तादि आठ युक्त होते हैं वह सुख और दीर्घजीवनका
प्रकार के सार कहे गये हैं, यथा-त्वक्सार, पात्र होता है।
रक्तसार, मांससार, मेदोसार, अस्थिसार, शरीरके शुभ लक्षण। | मज्जासार, शुक्रसार और सत्वसार । इन गूढवंशं वृहत्पृष्ठं निगूढा संधयो दृढाः॥११३ | आठ सारोंमें उत्तरोत्तर सार श्रेष्ठं हैं। धीरः स्वरोऽनुनादी च वर्णः स्निग्धास्थिरप्रभा संपूर्ण सारोंसे युक्त मनुष्य अत्यन्त गौरवस्वभावजं स्थिरं सत्वमविकारि विपत्स्वपि। शाली. संपूर्ण कार्यों के पूरा करने में आशाउत्तरोत्तरंसुक्षेत्रं वपुर्ग दिनीरुजम् । । आयामज्ञानविज्ञानैर्धमान शनैः शुभम् ११५/
१२वान् , सहिष्णु, सुन्दर वुद्धि से युक्त और इति सर्वगुणोपेते शरीरे शरदां शतम। | स्थिर चित्त होता है। आयुरैश्वर्य मिष्टाश्च सर्वे भावाः प्रतिष्ठिताः।
सत्वादि प्रकृति वाले को दुख सुख का ___ अर्थ-पृष्ठदेश-पीठ चौडी हो जिसमें
अनुभब । पीठ का बांस दिखाई न देता हो । संधि
अनुत्सेकमदैन्यं च सुखं दुःखं च सेवते। यां मांस से ढकी हुई और दृढ । स्वर
सत्ववांस्तप्यमानस्तुराजसो नैव तामसः ॥ गंभीर और घंटे के टंकोर के सदृश । वर्ण
___ अर्थ-सतोगुण मनुष्य अभिमान को स्निग्ध और स्थिर कांतियुक्त | सत्व-स्वाभा
| त्यागकर सुखको भोगता है और कृपणता विक स्थिर और बिपत्ति में भी विकार को | को त्यागकर दुःख को भोगता है रजोगुणी प्राप्त न होने वाला । इस तरह उत्तरोत्तर | मनुष्य अभिमान युक्त होकर सुख और कुशुभ क्षेत्र से युक्त गर्भ काल से रोगरहित | पण हांकर दुःख भोगकरता है और तमोलौकिक व्यवहार और शास्त्र के ज्ञान से | गुणी मनुष्य अत्यन्त मूढ होने के कारण परिवर्द्धित देह शुभ लक्षणों से युक्त होता | न दुख का अनुभव करता है न सुख का है । ऊपर कहे हुए संपूर्ण शुभ लक्षणों | अनुभव करताहै ।
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