SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२) अष्टांगहृदय । अ०३ वृद्धिरासप्ततेमध्यं तत्रावृद्धिः परं क्षयः॥ (४) अति गोरा, (५) अतिस्थूल, (६) अर्थ-सोलह वर्षकाअवस्था तक वाल्यावस्था आतेकृश (७ ) अतिदीर्घ और ( ८) होती है, इस वाल्यकाल में रसादि धातु अति लघु । नेत्रादि इन्द्रिय, और ओज की बृद्धि होती पीठआदि के लक्षण । है । सोलह वर्ष से सत्तर वर्ष की अवस्था सुस्निग्धा मृदवः सूक्ष्मा नकमूलाः स्थिरातक मध्यावस्था होती है, इसमें धात्वादिकों कचाः ॥ १०७॥ की वृद्धि नहीं होती है और सत्तर वर्षकी ललाटमुन्नतं क्लिष्टशंखमधंदुसंनिभम् । अवस्था से ऊपर धात्वादिकों का क्षय होता कर्णीनीचोन्नती पश्चान्महांती श्लिष्टमांसलौ नेत्रे व्यक्तासितसिते सुबद्धे घनपक्ष्मणी । है । ( वाल्यावस्था भी तीन प्रकारकी होती उन्नतामा महोच्छ्वासापीनर्जुनासिकासमा है एक केवल क्षीरपानावस्था, दूसरी क्षीरान ओष्ठौ रक्ताबनुवृत्ती महत्यौ नोल्पणे हनू । भोजन अवस्था, तीसरी अन्न भोजन अव- महदास्यं घना दंताः स्निग्धाः श्लक्ष्णा सिताः स्था । बाल्यावस्था में कफ की आधिकता समाः ॥ ११०॥ जिह्वा रक्तायता तन्वी मांसलं चिबुकं महत् होने से स्निग्धता, महुता, सुकुमारता,अल्प प्रीवाहस्वाधना वृत्ता स्कंधाबुन्नतपीवरी ॥ क्रोध और सौभाग्यादि होते हैं । मध्यावस्था उदरं दक्षिणावर्तगूढनाभि समुन्नतम् । भी तीन प्रकारकी होती है, यौवन, संपूर्ण- | तनुरक्तोन्नतनखं निग्धमाताम्रमांसलम्११२ त्व और अपरहानि । तीस वर्ष की अवस्था दीर्घाच्छिद्रांगुलि महत्पाणिपादं प्रतिष्ठितम् सक यौवन, चालीस वर्ष की अवस्थातक अर्थ-अव उन बातों को लिखते हैं संपूर्ण धातु, इन्द्रिय, बल, वीर्य, पौरुष, कि जिनके होने से, शरीर सुख और दीर्घ स्मृति, आदि स्थिर रहते हैं । इससे परे जीवन का पात्र होता है । जिसके केश अपरिहानि। .. चिकने, कोमल, सूक्ष्म, अनेकम्ल और शरीरका परिमाण और लक्षण । स्थिर होते हैं वह सुख का पात्र है । ऊंचा सं स्वं हस्तत्रय सार्धवपुः पात्रं सुखायुषोः। ललाट, श्लिष्ट और अर्द्धचन्द्राकार कनपटी, नचयाक्तमुद्रिक्तैरष्टाभिनिदितैर्निजैः॥ भरोमशासितस्थूलदीर्घत्वैः सविपर्ययैः ॥ | नीचे को छोटे और ऊंचे, पीछे को बडे अर्थ-जो देह अपने हाथसे साडेतीन | और मांसयुक्त । नेत्रसुव्यक्त काले और हाथ का होता है वही सुख औरै आयु का | सफेद मंडलों से युक्त, सुसंबद्ध और घने पत्र होता है। किंतु जो यह दंह मरण | पक्ष्मसे युक्त । नासिका आगेकी ओर ऊंची पर्यन्त आतनिन्दित अरोमशादि आठ दोषों महा उच्छास से युक्त, पुष्ट, सीधी और न से युक्त होतो सुख और आयु का पात्र | नीची न ऊंची । ओष्ठ-लाल, बाहर को नहीं है, वे आठ दोष ये हैं (१) रोमरहित, न निकले हुए । ठोडी-चौडी, ऊंचेको न (२) अतिरोमयुक्त, (३) अति काला, | उठी हुई । मुखका छिद्र---बडा । दांत For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy